Saturday 16 July 2011

पंचतंत्र की कहानी जैसे हैं पुराण

हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताएं पुराणों में वर्णित कहानियों से जुड़ी हैं. जिस तरह पंचतंत्र में नैतिक व बौद्धिक ज्ञान की बातें शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से समझाया गया है वैसे ही ईश्वर संप्रभुता एवं असीमित शक्ति को सिद्ध करने के लिए पंचतंत्र की कहानियों की काल्पनिक कहानियों की तरह ही पुराणों में कहानियों गढ़ी गई हैं. प्रायः हर धार्मिक कर्मकाण्ड के पीछे ऐसी ही कहानियां जुड़ी हुई हैं. ये कहानियां पूरी तरह काल्पनिक हैं इस बात का पता इसी से चाल जाता है कि किसी तथ्य के पीछे एक पुराण में एक कहानी दी है तो उसी तथ्य के पीछे दूसरे पुराण में अलग कहानी दी है. इससे पता चलता है कि वे दोनों ही कहानी झूठी हैं. जैसे- मथुरा के नजदीक स्थिति गोवर्धन पर्वत का हिंदू धर्म में विशेष महात्म्य है. बताया जाता है द्वापर में भगवान के अवतार श्री कृष्ण ने उसे एक उँगली पर उठाएं रखा था इसलिए वह पर्वत हिंदुओं के लिए पूज्य हो गया. हिंदू अपने पापों से मुक्ति के लिए अथवा किसी कार्य सिद्धि के लिए इस पर्वत की पैदल परिक्रमा करते हैं. वैसे तो इस पठारनुमा पर्वत की परिक्रमा लोग वर्ष भर लगाते हैं. परंतु मुडिया पूर्णिमा(गुरु पूर्णिमा) पर लगे मेले में इस परिक्रमा का महत्व बढ़ गया है और कल 15.07.11 को इस मेले में क़रीब 75 लाख(हिंदुस्तान अखबार के अनुसार)लोगो ने इस पर्वत की परिक्रमा लगाई. इसका महिमा मंडन अखबार ने इस प्रकार किया है- गुरुपूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. ट्रेनों में चढ़ने और उतरने में श्रद्धालुओं की सांसे फूल गईं व्यवस्था को बनाए रेलवे अधिकारियों के पसीने छूट गए. स्टेशन पर पैर रखने की भी जगह नहीं थी. पूछ्ताछ केंद्र पर भी लोगों भीड़ उमड़ी पड़ रही थी. शुक्रवार को मथुरा जंकशन पर पहुँचने वाली ट्रेनों में तिल भर जगह नहीं मिल रही थी. सोचने की बात है कि पिछले दिनों इस तरह के तमाम धार्मिक भीड़ भाड़ में लगातार ऐसी घटनाएं घटी हैं जिन में दर्जनों लोग मारे गए हैं. प्रतिवर्ष मंदिरों भगदड़ मचने और उसमें लोगों के मारे जाने का जैसे दस्तूर सा बन गया है. इसके बावजूद मीडिआ इस तरह के धार्मिक उत्सवों का जोर शोर से प्रचार व महिमा मंडन करता है. इसकी मुख्य वजह यही है कि धर्म राज्य व्यवस्था की तमाम जन समस्स्याओं से जनता का ध्यान हटाने का एक साधन है और पूँजीपतियों का मीडिआ धर्म का उपयोग इसी काम के लिए करता है. अब ज़रा इस बात पर गौर करें कि जिस मान्यता के आधार पर 75 लाख लोगों ने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाई उसकी सच्चाई क्या है. आदिवाराह पुराण के अनुसार त्रेता में समुद्र पर सेतु- बंधन के समय हनुमान के मन में विचार आया कि में बड़ा पत्थर सेतु निर्माण के लिए लाऊँ. वे उत्तरांचल से गोवर्धन को उखाड लाए. वे ब्रज से गुज़र रहे थे कि उन्हें पता चला कि सेतु निर्माण हो चुका है और उन्होने गोवर्धन की ब्रज में ही स्थापना कर दी. गर्गसंहिता के अनुसार एक बार पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत पर पहुंचे वहाँ वे द्रोणाचल के पुत्र गोवर्धन को देखकर मंत्र मुग्ध हो गए और उसे काशी ले जाने की इच्छा व्यक्त की. द्रोणाचल ने शाप के डर से स्वीकृति तो दे दी पर यह भी कह दिया कि इसे एक बार जहाँ स्थापित कर दोगे वहीं स्थापित हो जाएगा. ब्रज में आकर गोवर्धन ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया और पुलस्त्य के लिए वह बोझ असहनीय हो गया. अतः वे गोवर्धन को तिल तिल भर रोज़ घटने का शाप देकर चले गए. इन दोनों कहानियों में कोई तालमेल नहीं है. अगर कोई व्यक्ति थोड़े से तर्क के साथ सोचे तो स्पष्ट हो जाएगा कि ये दोनों कहानियां पंचतंत्र की तरह गढ़ी हुई कहानियों के सिवा कुछ नहीं हैं.

Wednesday 6 July 2011

माया महाठगिनी नहीं है

धर्म शास्त्रो में धन दौलत को माया कहा गया है. यह भी कहा जाता है कि माया भ्रमित करने वाली होती है, महाठगिनी होती है आदि आदि. वैराग्य शब्द का अर्थ भी यही है मतलब सांसारिकता से लगाव समाप्त हो जाना. इसमें भी धन दौलत से लगाव न रखना वैराग्य का मुख्य लक्षण माना गया है. धन दौलत को माया कहा गया है. माया ठगिनी एक मुहावरा बन गया है. माया मोह को परम सत्ता यानी ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में बाधा बताया गया है. दर अस्ल सत्ता वर्ग के लिए धर्म का यही रूप सबसे अधिक उपयोगी है. वह चाहता है धर्म उपदेशक जनता में अधिक से अधिक इस विचार का प्रचार करें. दर अस्ल पैसा अच्छे जीवन स्तर के लिए एक आवश्यक शर्त है. आज के दौर में व्यवस्था ने आम आदमी के सामने बेहद मुश्किलें खड़ी कर दी हैं . पैसे की कीमत बहुत अधिक गिर गई है. गाँव में पहले लोग पूरे दिन भूखे बाज़ार से लौट आते थे पर सौ का नोट नहीं तुड़ाते थे. अब लोग एक सिगरेट के लिए एक हज़ार का नोट तुड़ा देते हैं. पैसे का अवमूल्यन इस क़दर हुआ है कि जिसके पास करोड रुपया भी है वह भी अपना व बच्चों का भविष्य निश्चिंत होकर सुरक्षित महसूस नहीं करता. यही कारण है कि सामाजिक मूल्यों में बेतहासा गिरावट आई है और हर कोई किसी भी उचित या अनुचित तरीक़े से अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है. धर्म उपदेशक या धर्म गुरू जो लाखों की भीड़ ठेले फिरते हैं कितना ही कहें माया ठगिनी है, माया मोह छोड़कर ईश्वर का भजन करो पर सच्चाई यह है कि पूँजीवदी व्यवस्था ने पैसे के महत्व को इस क़दर सर्वमान्य कर दिया है कि नितांत धार्मिक लोग भी धर्म के हर पाखंड को मान लेते हैं पर माया ठगिनी वाली बात धार्मिक या सामाजिक चर्चा में मानते हुए भी उसे जीवन में नहीं उतार पाते. यही कारण है कि हर धर्म गुरू के पीछे लोगों की लंबी लाइन लगी है फिर भी सामाजिक व नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट आ रही है. यह बात सिर्फ़ आम धार्मिक लोगों के बारे में ही नहीं है, धर्म को संचालित करने वाले पुजारी व पुरोहित वर्ग में तो और भी घ्रणित रूप में उभर कर आती है. यही वजह है कि धार्मिक क्रिया कलाप संचालित करने वाले आम पुजारी ही नहीं जिन्हें माया मोह से ऊपर समझा जाता है और आम धार्मिक व्यक्ति की दृष्टि में सांसारिकता से ऊपर उठ गया है या भगवान की श्रेणी में आ गया है उसके मरने के बाद उसके पीछे अथाह धन दौलत पता चलती है. हाल ही में साईं बाबा की मौत के बाद लाखों करोड़ की प्रोपर्टी इसका अच्छा उदाहरण है. बाबा रामदेव आशा राम बापू सहित तमाम धर्म गुरू इसके अन्य उदाहरण हैं. अभी तिरुवंतपुरम, केरल के श्री पदमनाभन स्वामी मंदिर में जो एक लाख करोड़ से भी अधिक का खजाना मिला है उसे भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए. लेकिन महत्वपूर्ण है इनके प्रति सत्ता का रवैया जानना. मीडिया पौने दो लाख करोड के ए. राजा के घोटाले को घोटाला मानता है परंतु एक लाख करोड से अधिक के इस घोटाले को जनता में सूचना देने लायक भी नहीं समझता( हिंदुस्तान सहित आज के कई अखबारो ने यह खबर नहीं छापी है.) मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यह संपत्ति मंदिर की ही रहेगी.

Thursday 23 June 2011

देश साधू महत्माओं को सोंप देना चाहिए

इस देश में साधू, महात्मा, बापू, अध्यात्मिक गुरू जैसे लोगों की जो सामाजिक हैसियत बनी है उससे पता चलता है कि सत्ता में शीर्ष भागीदारी करने वालों में पूँजीपतियों, नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ- साथ इस धार्मिक वर्ग की भी सत्ता पर मजबूत पकड़ बनी है. बाबा रामदेव, साईं बाबा ,आशा राम बापू जैसे लोगों ने सत्ता के समानांतर अपना साम्राज्य खड़ा किया है. व्यवस्था पर मजबूत पकड़ रखने वाला यह वर्ग सत्ता वर्ग के लिए पूजनीय है और सत्ता वर्ग इस वर्ग के हर काले कारनामे की अनदेखी करता है. इस वक़्त इस वर्ग के दो बेहद प्रभावशाली व्यक्ति साईं बाबा और बाबा रामदेव लगातार चर्चा में बने हुए हैं. साईं बाबा का हाल ही में निधन हुआ है. इस वक़्त वे अपनी संपत्ति को लेकर चर्चा में हैं. माना जा रहा है कि वे 38 करोड़ के बेड रूम में सोते थे और करोड़ों की नगदी उनके बेड रूम से बरामद हुई है. वास्तव में अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि साईं बाबा ट्र्स्ट के पास कुल कितनी संपत्ति है. दूसरी तरफ़ बाबा रामदेव हैं जो 10 वर्ष पहले साइकिल से चलते थे. मात्र 10 साल में उन्होंने जितनी संपत्ति इकट्ठी की उतनी तो किसी उद्योगपति के लिए अपने उद्योग से इकट्ठा करना भी मुश्किल होगा. कनखल में 10 बीघा में फैला गोदाम और स्वामी रामदेव के भाई राम भरत का प्रशासनिक कार्यालय , औद्योगिक क्षेत्र हरिद्वार में दो फैक्ट्री जिनमें क़रीब 250 आयुर्वेदिक उत्पाद बनाए जाते हैं, 50 एकड़ में फैला पतांजली फूड एवं हर्वल पार्क जिसामे 10 यूनिट काम कर रही हैं, 150 बीघा में फैला पतांजली योगपीठ फेज़ 1, 450 बीघा में फैला पतांजली योगपीठ फेज़ 2, दिल्ली हाइ वे पर 200 बीघा में पतांजली नर्सरी और फ़ैक्ट्री, 800 बीघा में पतांजली योग ग्राम, पतांजली गोशाला जिसामे 500 से अधिक गायें पाली जाती हैं. सर्वप्रिय विहार कॉलोनी में तीन बड़ी बिल्डिंग्स जिनामें उनके रिश्तेदारों के निवास व गोदाम हैं. हिमाचल प्रदेश में तमाम संपत्ति, स्काटलेंड में एक द्वीप. यनी बाबा रामदेव के ट्रस्ट के पास अकूत संपत्ति है. यह बात केवल रामदेव और साईं बाबा के बारे में ही सच नहीं है बल्कि ऐसे धार्मिक गुरुओं व बाबाओं अच्छी खासी संख्या है जिन्होंने अपने इस धार्मिक धंधे से संपत्ति का अंबार लगा रखा है. संत निरंकारी(जिन्होने दिल्ली में जहाँगीर पुरी के पास अरबों की ज़मीन घेर रखी है) आशाराम अपने नाम का ताबीज़, अगरबत्ती आदि तक बेचने का उद्योगधंधा चला रहे हैं. खुद रामदेव ने इतनी दौलत ठगी कर के ही इकट्ठी की है. लडका ःओने की दवा बेचना, जवान होने की दवा बेचना, एड्स व केंसर के इलाज़ का दावा करना ये सब ठगी ही है. वास्तव में इतनी ठगी से भी इतनी दौलत इकट्ठी नहीं की जा सकती जितनी रामदेव के पास है. अगर उनके सारे क्रिया कलापों की पड़ताल हो तो पता चलेगा कि कितने अनुचित काम हैं जिनके द्वारा उन्होंने इस क़दर बेशुमार दौलत इकट्ठी की है. ऐसे ही न जाने कितने संत, बाबा, महात्मा अकूत संपत्ति इकट्ठी कर रहे हैं व्यवस्था जानबूझ कर ऐसे लोगों को बढ़ावा भी दे रही है. उसकी एक वजह यह है कि ये लोग आम आदमी का ध्यान व्यवस्था की खामियों से भटकाए रहते हैं. दिग्विजय सिंह आज यह बात कह रहे हैं कि बाबा कि संपत्ति की जाँच होनी चाहिए क्योंकि बाबा ने उनकी पार्टी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है वरना क्या अब तक वे सो रहे थे और उन्हें ख़्वाब में पता चला है कि बाबा ने इतनी संपत्ति ग़लत तरीक़े से पैदा की है. साईं बाबा इसका अच्छा उदाहरण हैं. साईं बाबा के ट्रस्ट के पास कितनी संपत्ति है अभी उसका ठीक - ठीक अनुमान भी नहीं है. जहाँ हाथ डालो वहीं से करोड़ो रुपया निकल आता है. फिर भी किसी पार्टी द्वारा, नेता या मीडिया के द्वारा उसकी आलोचना तक नहीं हो रही. उल्टे मीडिया उन्हें विकास का रोल मॉडल बता रहा है. साईं बाबा की मौत के बाद 26 अप्रेल के हिंदुस्तान ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल क़लाम का लेख 'परिवर्तन के अग्रदूत सत्य साईं बाबा' प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है - क्या निःस्वार्थ सामाजिक बदलाव का बाबा से बड़ा कोई रोल मॉडल हो सकता है. क़लाम ने यह बात यह जानते हुए लिखी है कि साईं बाबा ने यह तमाम दौलत ठगी कर के इकट्ठी की है. चमत्कारों के बल पर ही साईं बाबा भगवान बने थे और हैदराबाद टी.वी रिकॉर्डिंग पी.सी सरकार जैसे तमाम तरीकों से यह बात पूरी तरह साबित हो गई थी कि साईं बाबा के चमत्कार कोरी ठगी हैं. व्यव्स्था ने इन साधू महात्माओं, बाबा बापुओं को अकूत दौलत इकट्ठी क़रने की छूट दे रखी है उससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि जनता में ऐसा संदेश फैला रखा है जैसे बेशुमार दौलत इकट्ठी कर के वे परोपकार का भारी काम कर रहे हैं. लखों करोड की दौलत का मन माना उपयोग करके अगर कोई बाबा एक अस्पताल व स्कूल खुलवा दे और उसके बारे में यह कहा जाए- सामाजिक बदलाव का बाबा से बड़ा कोई रोल मॉडल हो सकता है'(हिंदुस्तान व अब्दुल क़लाम के अनुसार) तो बेहतर यही होगा कि इस देश की व्यवस्था इन बाबाओं के हाथ में सोंप दी जाए. यह व्यवस्था द्वारा स्थापित विचारों का असर है कि लोग इन मुद्दों पर तार्किकता से सोचने के बजाय व्यवस्था द्वारा स्थापित बातों को दोहराते हैं कि यह संपत्ति तो दान में आई है, यह तो ट्रस्ट की है, इसमें बाबा का क्या है वगैरह. वे यह भूल जाते हैं इस तरह तो बड़ी - बड़ी कंपनियों के मालिक भी यही कहते हैं कि वे उसके चेयरमेन हैं और एक अधिकारी की तरह वेतन लेते हैं.

Wednesday 27 April 2011

.सत्य साईं बाबा जो सत्य नहीं था

'औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में, कुछ लोगों का सीधापन है कुछ अपनी अय्यारी है.' निदा फ़ाज़ली का ये शेर सत्य साईं बाबा पर एकदम सटीक बैठता है. सत्य साईं बाबा ने भी कुछ लोगों के सीधेपन का फ़ाइदा उठाकर और कुछ अपनी अय्यारी द्वारा औरों जैसे होकर भी अपने आपको भगवान मनवा लिया. आज तमाम देशों में क़रीब 60 लाख उनके भक्त भगवान की तरह मानते हैं. दर्ज़नों लोग भगवान बनने की प्रक्रिया में हैं. दुर्भाग्य्पपूर्ण है कि ऐसे लोगों की सच्चाई दुनिया को बताने के बजाय व्यवस्था धर्म और अध्यात्म की झालर- पन्नी लगा कर उन्हें और चमकीला बना देती है. सत्य साईं बाबा का जन्म 23 नव. 1926 ई. को पुट्टपर्थी आंध्र प्रदेश में हुआ था.बचपन का नाम सत्यनारायन राजू था. 14 वर्ष की उम्र में एक बार उन्हें बिच्छू ने काट लिया. वे कुछ दिन बाद ठीक हो गए. इस बीच मनसिक स्थिति ठीक न होने के कारण वे कुछ असामान्य बातें करते रहे. उसके कुछ समय बाद 20 अक्टूबर 1940 को उन्होंने घोषणा की कि वे शिरडी के साईं बाबा के दूसरे अवतार हैं. उसके बाद साईं बाबा ने चमत्कार दिखाने शुरू किए. वे हवा में हाथ लहरा कर पवित्र राख, अॅगूठी, घड़ी आदि पैदा कर देते थे. शिवरात्रि के दिन वे मुँह से शिव लिंग निकाल कर अपने भक्तों को देते थे. प्रसिद्ध जादूगर पी.सी. सरकार जूनियर ने उनसे कई बार मिलने की इज़ाजत चाही पर उन्हें इज़ाजत मिली नहीं . अंततः पी.सी सरकार ने अपने आप को पश्चिमी बंगाल के बड़े उद्योगपति का बेटा बताया तो साईं बाबा उन्से मिलने को तैयार हो गए. पी.सी सरकार ने साईं बाबा से गिफ़्ट पैदा करने की इच्छा ज़ाहिर की. साईं बाबा एक कमरे में गए फिर उन्होंने हवा में हाथ लहरा कर संदेस(बंगाली मिठाई)पैदा कर पी.सी. सरकार को दे दिए. पी.सी सरकार ने कहा उन्हें संदेश पसंद नहीं हैं और उन्होंने हवा में हाथ लहरा कर रसगुल्ला साईं बाबा को दे दिए. उन्होंने अपना परिचय दिया तो साईं बाबा ने अपने भक्तों से पी सी सरकार को बाहर निकलवा दिया. उसके बाद पी.सी सरकार ने हवा में चीज़ें पैदा करने की साईं बाबा की हर ट्रिक का पर्दाफ़ाश किया. पी.सी सरकार ने उनके बारे में कहा -वे दैवीय शक्ति से संपन्न नहीं हैं. जहाँ तक कि वे अच्छे जादूगर भी नहीं हैं. वे इतने ढोंगी हैं कि उन्होंने सभी जादूगरो का नाम खराब किया हुआ है. मैं सोचता हूँ उन्हें अत्यधिक अभ्यास करना चाहिए. कुछ समय बाद साईं बाबा ने एक मैरिज हौल खुलने के उपलक्ष में एक बड़ा आयोजन किया. आयोजन में हिस्सा ले रहे विशाल श्रोता, जिनमें प्रधानमंत्री पी.वी नरसिम्हा राव भी शामिल थे, के सामने बाबा ने हवा में सोने की चेन पैदा करने का कारनामा किया. बाबा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि इसे हैदराबाद दूरदर्शन ने कवर किया था. जब टेप को दोबारा देखा गया तो केमरा ने सच्चाई पकड़ ली. टेप में बाबा का असिस्टेंट चेन दे रहा था बाद में बाबा की पहुँच के चलते हैदराबाद दूरदर्शन ने वह टेप समाप्त कर दिया. इसके बाद भी बाबा के चमत्कार जारी रहे. रक्षा विभाग के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार एस. भगवंतम के मंद बुद्धि पुत्र के बीमार होने पर बाबा ने उसके शरीर पर भभूति मली और एक लंबी सुई से रीढ़ की हड्डी से पानी निकाल कर ड्रेसिंग करा दी. बच्चा ठीक हो गया. हालांकि बाद में भगवंतम ने कहा- बाबा झूठा है और बाबा से अपने सारे संबंध समाप्त कर लिए.(miracle man or petty magician? On www.saibaba-x.org.uk/15/sunday magazine.html) धार्मिक आस्था व्यक्ति को किस हद तक अंधा बना देती है साईं बाबा इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण हैं. उनके चमत्कारों की बार-बार पोल खुली, उनकी जादुई ट्रिकों का पर्दाफ़ाश हुआ, जहाँ तक कि उनके समलैंगिक संबंध भी प्रकाश में आए पर साईं बाबा को मानने वाले भक्तों की संख्या में कमी नहीं आई.उनके अधिकांश भक्त अपर क्लास और अपर मिडिल क्लास के होते थे परंतु आम आदमी से लेकर प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति, सिने अभिनेता, क्रिकेटर्स,आई.ए.एस आदि प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर,इजीनियर्स, वैज्ञानिक सभी उनके भक्तो व प्रशंसकों में शामिल हैं. इन सबके लिए हमारे समाज के वैज्ञानिक बोध के स्तर में कमी होना तो है ही शासक वर्ग व मीडिया द्वारा इन चीज़ों को स्थापित करना भी बड़ा कारण है. मीडिया इस तरह की घटनाओं की सच्चाई बताने के बजाय अत्यधिक मात्रा में उनका महिमा मंडन करता है. दर अस्ल इस तरह की अज्ञानिक बातों की समाज में बड़ी वजह मीडिआ के धुआधार प्रचार के साथ एक चेन सिस्टम का बन जाना है. लोग अपने आप को इस तर्क से संतुष्ट कर लेते हैं कि इतने लोग मानते हैं तो कोई न कोई सच्चाई ज़रूर होगी. ऐसे में बड़े राजनेता, डॉक्टर इजीनियर,प्रशासनिक अधिकारी भी जुड़ जाएँ तो इस तरह के धार्मिक क्रिया कलापों को अत्यधिक मान्यता मिल जाती है. जैसे तेल देशी जड़ी बूटियों से तंबू तानकर इलाज़ करने वाले तथाकथित हक़ीम जनता में विश्वास जमाने के लिए अपने साथ पुलिस वालों की फॉटो खिंचवा कर लगा लेते हैं. इसी तरह मीडिआ अपनी तरह से इन चीज़ों को मैनेज करता है. जैसे 24 अप्रेल सुबह 7:40 पर साईं बाबा की मौत हुई. पूरा मीडिआ साईं बाबा के गुणगान में लगा है. अवसरानुकूल उन लोगों से भी साईं बाबा की प्रशंसा में लिखवा रहा है या कहलवा रहा है जो साईं बाबा के कटु आलोचक रहे हैं. जैसे पी.सी सरकार का ज़िक्र मीडिआ बार-बार कर रहा है-वे कह रहे हैं बाबा के चमत्कार भले ही झूठे हों पर वे उनके परोपकारी कार्यों की प्रशंसा करते हैं . 26 अप्रेल के हिंदुस्तान ने पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल क़लाम का लेख ''परिवर्तन के अग्रदूत सत्य साईं बाबा'' प्रकाशित किया है. उन्होंने लिखा है-बाबा देश के लोगों की बुनियादी ज़रूरतों को लेकर बेहद संजीदा थे,खासकर आंध्र प्रदेश व कर्नाटक के लोगों के लिए. कलाम साईं बाबा के स्कूल,अस्पताल व पेयजल से जुड़े कार्यों की भरपूर प्रशंसा करते हैं और अंत में लिखते हैं - क्या निःस्वार्थ सामाजिक बदलाव का बाबा से बड़ा रोल मॉडल कोई और हो सकता है? एक बाबा जिसका पूरा जीवन धार्मिक ढोंग व पाखंड पर टिका था और जिसने उससे अथाह दौलत इकट्ठी की उसके बारे में एक वैज्ञानिक(?) की इतनी प्रशंसा लोगों के बीच उसको ईश्वर माने जाने की अवधारणा को और पुष्ट करेगी. साईं बाबा ने अपनी धार्मिक पहुँच से अनुमानतः डेढ़ लाख करोड़ की चल-अचल संपत्ति इकट्ठी की. यह स्वामी सेंट्रल ट्रस्ट द्वारा संचालित होती थी. बाबा के अलावा इस ट्रस्ट में 6 न्यासी और 4 सदास्यो वाली प्रबंध परिषद थी.न्यासियों में बाबा के अतिरिक्त पूर्व मुख्य न्यायधीश पी.एन भगवानी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त एस.वी. गिरी बाबा का भतीजा आदि शामिल थे. आज जनता में बाबा के सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल, कॉलेज व पेय जल से जुड़े कार्यों की काफ़ी चर्चा है. ऐसे में हाल ही में श्रेया अय्यर की अगुआई में केंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा भारत में 568 धार्मिक संगठनों पर किया गया शोध याद आता है. शोध में बताया गया है कि धार्मिक संगठानो में व्यापारिक संगठानो की तरह ही कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है. वे अपने अनुयाइयों को लुभाने के लिए तरह तरह के जनोपयोगी कार्यों का संचालन करते हैं. वैसे बाबा ने ये परियोजनाएँ चला कर समझदारी का ही काम किया. इतनी अथाह दौलत से कुछ हिस्सा निकाल कर ये परियोजनाएं चलाईं तो आज क़लाम जैसे लोग भी सामाजिक बदलाव का सबसे बड़ा रोल मॉडल बता रहे हैं वरना आज उनके बारे में दो तरह की ही बातें हो रही होती उनके अनुयाई और शासक वर्ग उन्हें भगवान घोषित कर रहे होते तो उनके आलोचक उनके धार्मिक पाखंड व धूर्ता की पोल खोल रहे होते. लेकिन इस देश का दुर्भाग्य 24 अप्रेल 2011 को सत्य साईं बाबा की मृत्यु के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता. लोग प्रेम साईं बाबा के अवतार की तैयारी में जुट गए होंगे. क्योंके 6 जुलाई 1963 को सत्य साईं बाबा ने घोषणा की थी कि साईं बाबा के 3 अवतार होने हैं . पहले शिरडी साईं बाबा .दूसरे वे खुद यानी सत्य साईं बाबा और तीसरे प्रेम साईं बाबा जो उनकी मृत्यु के 8 साल बाद पैदा होंगे. ज़ाहिर है सत्य साईं बाबा भी शिरडी साईं बाबा की मृत्यु के 8 साल बाद ही पैदा हुए थे. 8 साल का अंतराल अधिक होता है और संभव है तब तक कई लोग साईं बाबा के अवतार का दावा करें. स्वाभाविक है वही अपने आप को प्रेम साईं बाबा सिद्ध कर पाएगा जो बड़ी ठगी कर ले जाएगा या सत्य साईं बाबा के प्रभावशाली अनुयाई जिसे षडयंत्रित कर सत्य साईं बाबा के भक्तों के बीच स्थापित कर देंगे. साईं बाबा के बहुत से भक्तों को अभी विश्वास ही नहीं हुआ है कि साईं बाबा मर चुके हैं क्योंके साईं बाबा ने घोषणा की थी कि वे 96 वर्ष की उम्र में यानी 2022 में मरेंगे. उनका विश्वास है ज़रूर कोई चमत्कार होगा और साईं बाबा जीवित हो उठेंगे. जबकि एक भक्त अनिल कुमार का कहना है कि चंद्रमा के कलेंडर के अनुसार वे 96 वर्ष के हो चुके थे. उसने दावा किया है कि एक बार बाबा की छवि उसे चंद्रमा पर नज़र आई थी. कुछ वर्ष पहले यह चर्चा फेल गई थी कि बाबा चंद्रमा में नज़र आएँगे. उस दिन बादल छए हुए थे परंतु अनिल का कहना है कि उसने बाबा को चंद्रमा में देखा था. यह भी विडंबना ही है कि अनपढ़ लोग ही नहीं बेहद पढ़े लिखे लोगों की भी यह धरणा थी कि बाबा की भभूति व आशीर्वाद से बीमार लोग स्वस्थ हो जते हैं परंतु बाबा जब भी बीमार पड़े डॉक्टर ही उनके काम आए. चाहे वे पेरालाइज़ हुए हों तब या उन्हें दो बार हार्ट अटैक हुआ हो तब य उनकी अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ हो तब अथावा मौत से पहले एक माह तक उनका इलाज़ चला हो तब हमेशा उनकी बीमारी को डॉक्टरों ने ही ठीक किया.

Monday 28 March 2011

धर्म का धंधा

वर्तमान समय में धर्म एक कारोबार बन गया है. तमाम धर्म गुरू, उपदेशक, कथा वाचक, आदि ने धर्म के नाम पर संस्थाएँ खड़ी कर ली हैं. ये संस्थाएँ श्रद्धालुओं का तरह - तरह से शोषण करती हैं. धर्म के अगुआ अपनी तस्वीर का ताबीज़ बनवा कर बेच रहे हैं और अंधभक्त जनता उन्हे गले में लटकाए घूम रही है. गौर से देखने पर सारी बातें समझ में आ जाती हैं परंतु व्यवस्थित अध्ययन इन बातों को न सिर्फ़ अधिक स्पष्ट कर देता है बल्कि उसे ठोस आधार भी प्रदान करता है. ऐसा ही एक अध्ययन भारतीय मूल की शिक्षाविद श्रेया अय्यर की अगुआई में कैंब्रिज यूनीवर्सिटी ने किया है. अर्थशाश्त्र विभाग के एक दल ने दो वर्षों तक हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और जैन धर्मों के 568 संगठनो पर अध्ययन किया. इसमें हिंदुओं के 272 संगठन, मुस्लिम के 248 संगठन , ईसाइयों के 25 संगठन और 23 सिख एवं जैन संगठन शामिल थे. इसमें सात राज्यों के धार्मिक संगठनों की धार्मिक व गैर धार्मिक गतिविधियों पर अध्ययन किया गया है. इस अध्ययन के नतीजे रिसर्च होराइजंस के ताज़ा संस्करण में प्रकाशित हुए हैं. अध्ययन के निष्कर्ष इस प्रकार हैं - 'भारत में धर्म एक बड़ा कारोबार है. यहाँ के धार्मिक संगठन न सिर्फ़ व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, बल्कि लोगों की निष्ठा बरकरार रखने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं . धार्मिक संगठनों के बीच बिजनेस संगठनों की तरह कड़ी स्पर्धा होती है. जिस तरह से कारोबारी संगठन बाज़ार में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं , उसी तरह धार्मिक संगठन भी स्पर्धा में आगे निकलने के लिए, अपने आस पास के राजनीतिक आर्थिक और अन्य तरह के महौल को बदलते हैं. धार्मिक संगठन रक्तदान, नेत्र शिविर, चिकित्सा सेवा शिविर और ग़रीबों के लिए सामूहिक विवाह जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं ताकि अपने से जुड़े लोगों की निष्ठा को बरकरार रख सकें और अन्य लोगों को अपनी ओर खींच सकें. विचारधारा के मामलों पर धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश के लिए नीतियां अपनाते हैं. हम आम तौर पर धार्मिक संस्थाओ के बारे में भोले भाले लोगों के तर्क सुनते हैं कि वे लोग आखिर कोई खराब चीज़ को बता नहीं रहे, अच्छी बातें ही बताते हैं . इस अध्ययन से पता चलता है कि अच्छी बातें बताने के साथ ये लोग कैसे अपना धंधा चलाते. सवाल यह नहीं हैं कि वे अच्छी बातें बताते हैं कि खराब बातें. यह सवाल महत्वपूर्ण है कि कुछ अच्छी बातें व कुछ अच्छे कामों की आड़ में वे जो धंधा चलाते हैं वह समाज के लिए हनिकारक है . लेकिन सबसे खतरनाक है वे समाज की जो अवैज्ञानिक सोच उत्पन्न करते हैं . इससे न सिर्फ़ समाज का विकास रुकता है बल्कि समाज समय से पीछे चला जाता है

Monday 28 February 2011

सतोगुणी लोगों की सच्चाई

'राजनीति में धर्म क्षेत्र से जुड़े सतोगुणी लोगों के आने पर आपत्ति क्यों' बाबा रामदेव के समर्थन में उमा भारती का आज का बयान.(27.02.11) माले गाँव बम धमाके में सुनील जोशी मर्डर काण्ड में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ़्तार किया(आज की खबर) असीमानंद के बयान आ रहे हैं. एक पूर्व भाजपा सांसद हैं साक्षी महाराज. उन पर इण्टरमीडिएट कॉलेज की एक महिला प्रिंसिपल ने कई आरोप लगाए. आश्रम की जगह को लेकर उन पर मुकद्दमे दर्ज हुए हैं. भाजपा ने तमाम साधू- संतों को टिकट दिए और राम लहर में वे जीत भी गए. इन सतोगुणियों ने संसद में जाकर कौन सा ऐसा काम कर दिया. भाजपा भी दूसरी पार्टियों से ज़्यादा सतोग़ुणी है. वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक शाखा है. संघ की तो पूरी इमारत ही सतोगुणो पर खड़ी है. भाजपा के सतोगुणी सांसदो के कारनामे दूसरों से कहां अलग हैं. खुद उमा भारती कितनी सतोगुणी हैं यह भी सब जानते हैं. एक समय वे भाजपा की सबसे बड़ी फ़ायर ब्राण्ड थीं. और उसी की बदौलत मुख्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचीं. अपनी पार्टी के एक कार्यकर्ता को उन्होंने थप्पड़ मार दिया. यह उनका अपनी पार्टी में सामंती व्यवहार है. वे हर वर्ष केदार नाथ जाती हैं. अपने पार्टी कार्यकरताओ से राजा- महाराजाओं की तरह सेवा लेती हैं. चार मज़दूर उन्हें डोली में लाद के 14 किमी की खड़ी चढाई चढ़ते हैं और वे हाथ में माला लेकर जय हनुमान ज्ञान गुन सागर' गुनगुनाती हैं. यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि ऐसे तमाम सतोगुणी मेहनतकश जनता के कंधों पर सवार हो कर अध्यात्म का सुख लूट रहे हैं. समाज में भी और अब राजनीति में भी. लेकिन जनता को अनंत काल तक मुर्ख नहीं बनाया जा सकता.

Friday 21 January 2011

इन मौतों का ज़िम्मेदार कौन है?

-Ram Prakash Anant मौत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और एक न एक दिन सभी को मरना ही है. लेकिन अपने जीवन की अंतिम स्वाभाविक परिणति तक पहुँचे बिना यदि व्यक्ति असमान्य रूप से मौत को प्राप्त होता है तो वह एक दर्दनाक घटना है. एक सभ्य समाज में व्यक्ति की मौत सबसे ख़ौफ़नाक घटना होनी चाहिए विशेषकर तब जब वह मौत बेहद सस्ती और ऐसे कारण से हुई हो जिसे आसानी से रोका जा सकता हो. अगर इस तरह की मौतें रोज़ाना हज़ारों की सख्या मैं हो रही हों जिन्हें रोका जा सकता हो परंतु राज सत्ता रोक नहीं रही हो तो इससे अधिक उस समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है. 14 जनवरी को सबरीमाला केरल में एक मंदिर में हुए हादिसे में 104 लोगों की जान चली गई. अफ़सोस की बात यह है कि इस तरह की घटनाएँ बार-बार घट रही हैं और राजसत्ता न तो उनसे कोई सबक ले रही है और न उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है. बल्कि सीधे तौर पर कहा जाए तो वह लोगों को आए दिन होने वाले इन हादिसों में मरने के लिए प्रेरित कर रही है. राजसत्ता धार्मिक स्थानों पर जुटने वाली भीड़ की सुरक्षा का तो कोई इंतज़ाम नहीं करती ऊपर से राजसत्ता का सबसे सशक्त उपादान बन चुके कर्पोरेट मीडिआ जनता में इस क़दर धार्मिक अज्ञानता पैदा करने पर जुटा है कि यदि यह कहा जाए कि काफ़ी हद तक वही इस तरह की मौतों का ज़िम्मेदार है तो ज़्यादा ठीक रहेगा. उत्तराखंड में केदार नाथ,बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चार धाम की यात्रा मई से लेकर अक्टूबर-नवंबर तक चलती है. इन यात्राओं का खूब प्रचार किया जाता है जबकि अव्यवस्थाओं के चलते हर वर्ष सेकड़ों लोग इन यात्राओं में मारे जाते हैं. वर्ष 2007-08 में विभिन्न सड़क हदिसों में क़रीब 900 लोग मारे गए. आए दिन किसी न किसी मंदिर में भगदड़ मचती रहती है और लोग मरते रहते हैं. अगस्त 08 से 14 जनवरी तक इस तरह की विभिन्न मुख्य घटनाओं में 585 लोग मारे (या मरवाए)जा चुके हैं और सेकड़ों लोग घायल हुए हैं. 3 अगस्त 08 को नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में भगदड़ मची जिसमें 150 लोगों की मौत हुई और 230 घायल हुए. 30 सितंबर 08 को चामुंडा मंदिर जोधपुर राजिस्थान में 200 लोग मारे गए और 60 घायल हो गए. 21 दिसंबर 09 को राजकोट गुजरात में 9 लोग मारे गए. जनवरी 2010 मे शिवसागर पश्चिमी बंगाल में 7 लोग मारे गए. 4 मार्च 2010 को प्रतापगढ़ यूपी में कृपालू महाराज के जन्म दिन के भंडारे में 65 लोग मारे गए.27 मार्च 2010 को मध्य प्रदेश के कारिला गाँव में 8 लोग मारे गए और 10 गंभीर रूप से घायल हो गए. 14 अप्रेल 2010 को हरिद्वार में 8 लोग मारे गए. 16 अक्टूबर2010 को बाँका तेलडीहा दुर्गा मंदिर बिहार में 10 लोग मारे गए. जबकि 25 जनबरी 2005 को महाराष्ट्र के मांधरा देवी मंदिर में 340 एवं 27 अगस्त 2003 को नासिक कुंभ मेले में 39 लोग मारे गए. जिस तरह राजसत्ता इन हादिसों से न कोई सबक ले रही है और न उनसे बचाव के लिए कोई क़दम उठा रही है एवं मीडिआ कूट-कूट कर जनता में जिस तरह धार्मिक अंधविश्वास व अज्ञानता भर रहा है उससे तो यही लगता है कि राजसत्ता ने अपने आम नागरिकों को यों ही हदिसों का शिकार होने के लिए छोड़ रखा है. नैना देवी में हुई घटना में 150 लोग मरे थे और 230 घायल हुए थे.मुझे याद है घटना के एक दिन बाद ही एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार ने खबर लगाई-मौत पर भारी पड़ी आस्था. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद जुटी अपार भीड़ की बहादुरी की अख़बार ने जमकर तारीफ़ की. यानी अख़बार इतने बड़े हादिसे के दूसरे दिन ही भीड़ के उस पागलपन का जश्न मना रहा था और जनता को यह संदेश दे रहा था कि 150 क्या एक लाख 50 हज़ार लोग मर जाएँ तब भी मौत के आगे जनता की आस्था या अंधविश्वास भारी पड़ना चाहिए. अभी 14 जनवरी को सबरीमाला मंदिर में जो 104 लोग मारे गए हैं उसकी हिंदुस्तान ने जो रिपोर्टिंग की है उसे देख कर इन घटनाओं के लिए मीडिआ की ज़िम्मेदारी स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएगी. घटना पर अखबार ने जो ख़बर लगाई है उसके बराबर में ही बॉक्स में इस तरह की घटनाओं के कुछ आँकड़े दिए हैं और तीन हैडिंग्स लगाई हैं. सबरीमाला मंदिर-इसमें मंदिर की महत्ता को बताया है. मंदिर से जुड़ा है विवाद भी-इसमें जयमाला नाम की अभिनेत्री के फ़ॉटो के साथ यह ख़बर है कि 1986 में वे सबरीमाला मंदिर गईं थीं यह विवाद जुड़ा है. दर अस्ल मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. शुभ नहीं रहा है 14 जनवरी-इसमें लिखा है 14 जनवरी 1999 में मची भगदड़ में 52 श्रधालुओं की मौत.14 जनवरी 1952 में पटाखों में आग से 66 भक्तों की मौत. इसके नीचे इनवर्टेड कॉमा में लिखा है- 'सबरीमाला में हुए हदिसे से काफ़ी आहत हूँ .हम भारतीओं को सार्वजनिक जगहों पर व्यवहार करने की सीख लेने की ज़रूरत है. यह सिर्फ़ प्रशासन और सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं 'अभिजीत शिंदे एक आम आदमी ट्विटर पर. यह ख़बर बॉक्स में दी गई इन तीन हैडिंग्स से न सिर्फ़ असरहीन हो जाती है बल्कि पाठक पर मंदिर की महत्ता और 14 जनवरी के अशुभ होने का असर कहीं अधिक पड़ेगा. दर अस्ल ख़बर के साथ उतना ही बड़ा बॉक्स देने की वजह ही यही है. यहाँ एक बात और ध्यान देने की है. ट्विटर से अभिजीत शिंदे नाम के किसी सज्जन के विचार दिए गए हैं वे उनके कोई दर्शनिक विचार नहीं हैं. दर अस्ल जनता के इस तरह के विचार हिंदुस्तान और उसका सहयोगी मीडिआ बना रहा है. अभी-अभी हिंदुस्तान ने भ्रष्टाचार पर एक अखबारी सीरीज़ निकाली थी उसमें भी उसने ऐसे विचार रखे थे कि जनता ही रिश्वत देकर भ्रष्टाचार फैलाती है. दर अस्ल आज मीडिआ जनता को ही कठघरे में खड़ा कर राजसत्ता को उसकी ज़िम्मेदारी व पापों से मुक्त कर देना चाहता है. कुछ समय पहले कुछ लोगों ने यह माँग की थी कि अब संविधान से समाजवादी शब्द हटा लेना चाहिए. मैं भी इसका समर्थन करता हूँ और सुझाव देता हूँ कि उसमें से यह भी हटा लेना चाहिए कि हम देश का वैज्ञानिक विकास करेंगे और उसमें यह जोड़ देना चाहिए कि हम देश में घनघोर पूँजीवाद लाएँगे तथा जनता में धार्मिक अंधविश्वास व अवैज्ञानिकता कूट-कूट कर भर देंगे.

Saturday 15 January 2011

संतो के समाधान

-Ram Prakash Anant आम तौर पर संतों में लोग बहुत श्रद्धा रखते हैं. कभी-कभी तो लोग अंधभक्त की तरह ऐसा मान लेते हैं कि संत किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम हैं. जबकि मेरा अपना विश्वास है कि संत समाज की समस्याओ को हल नहीं कर सकते. उसका कारण है उनका सीमित सामाजिक ज्ञान व हर चीज़ के प्रति एक सा धार्मिक दृष्टिकोण. सामान्यतः संतों के समाधान को किसी उदाहरण के द्वारा समझाया जाता है. लोग इसे बिना दिमाग़ का इस्तेमाल किए श्रद्धावश मान लेते हैं. संत विनोवा भावे परंपरागत केवल धार्मिक ज्ञान रखने वाले संत नहीं थे. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. मेगसेसे अवार्ड भी उन्हे मिला था. उनके बारे में एक कहानी मैंने कई जगह अख़बार में पढ़ी है. कहानी शराब छोड़ने की समस्या को लेकर है. जो इस प्रकार है. एक बार एक व्यक्ति विनोवा भावे के पास आया.वह बोला-मैं शराब छोड़ना चाहता हूँ परंतु छोड़ नहीं पा रहा हूँ, कोई उपाय बताएँ. विनोवा भावे बोले कल मेरे पास आना मैं उपाय बता दूँगा. दूसरे दिन वह व्यक्ति विनोबा भावे के पास गया. उसने दरवाज़े से आवाज़ लगाई तो विनोबा भावे बोले कि मैं अभी आ रहा हूँ. जब काफ़ी देर हो गई और वे बार - बार यही बोलते रहे तो व्यक्ति ने पूछा आप क्यों नहीं आ रहे हैं तो वे बोले कि क्या करें, वे आना चाहते हैं परंतु खंभे ने उन्हें पकड़ लिया है इसलिए वे नहीं आ पा रहे हैं. इस पर उस व्यक्ति को घोर आश्चर्य हुआ. उसने अंदर आ कर देखा वे एक खंबे को पकड़े बैठे थे. उस व्यक्ति ने कहा, खंबे ने आप को कहाँ पकड़ा है आप खंबे को पकड़े बैठे हैं. विनोबा भावे खंबा छोड़ कर बोले यही तो मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुम शराब को पकड़े हो शराब तुम्हें नहीं पकड़े है. यद्यपि कहानी में आगे बताया गया है कि उस व्यक्ति ने उसके बाद कभी शराब को हाथ नहीं लगाया.तथापि शराबियों के सामने इस तरह के उदाहरण पेश कर शराब की समस्या से छुटकारा नहीं पाया जा सकता. दर अस्ल इस कहानी में कई तरह की समस्याएं हैं. मसलन खंबे को पकड़्ना और शराब पीना दोनों एक जैसी समस्याएं नहीं है. शराब आदमी पूरी ज़िंदगी पी सकता है पर पूरी ज़िंदगी खंबे को पकड़ कर नहीं बैठ सकता. दर अस्ल जब व्यक्ति खंबे को पकड़े होता है तो खंबा व्यक्ति पर कोई असर नहीं डाल रहा होता है परंतु शराब व्यक्ति के शरीर पर असर डालती है. कई बार व्यक्ति शराब छोड़्ना चाहता है परंतु छोड़ नहीं पाता. इस का अच्छा उदाहरण डिएडिक्शन क्लीनिक पर आने वाले मरीज़ हैं. तमाम मरीज़ जो शराब छोड़्ना चाहते हैं पर छोड़ नहीं पाते इन क्लीनिक्स पर ठीक हो कर जाते हैं. दर अस्ल विज्ञान और धर्म में यही फ़र्क़ है. धर्म एक समस्या को एक ही तरह से देखता है और वह प्रतीकों के माध्यम से जो समाधान प्रस्तुत करता है वह किसी सच्चाई की कसौटी पर तो कसा नहीं होता है. इसलिए अक्सर सच्चाई के रूप मैं भ्रम खड़ा कर देता है. इस मामले में ही विनोबा भावे पर सोचने के लिए सिर्फ़ एक उदहरण है जबकि विज्ञान उसे अनेक दृष्टिकोण से सोचता है.जैसे किसी व्यक्ति की विल पॉवर इतनी अच्छी है कि वह आसानी से शराब छोड़ सकता है. किसी व्यक्ति को शराब की लत(एडिक्शन) उतना अधिक तीव्र नहीं होता है और वह भी थोड़ी कोशिश के बाद आसानी से शराब छोड़ सकता है. जबकि कुछ लोगों में लत ( एडिक्शन) इतना तीव्र हो जाता है कि वे चाह कर भी शराब नहीं छोड़ पाते. यदि वे शराब छोड़्ते हैं तो शराब के अभाव में उनके शरीर पर बहुत ही बुरा असर पड़्ता है. मजबूरन वे चाहकर भी शराब नहीं छोड़ पाते. ऐसे लोगों को दवाओं की ज़रूरत होती है और दवाओं के सहयोग से वे शराब छोड़ सकते हैं.कई बार घर का माहौल ऐसा होता है कि व्यक्ति को शराब छोड़ पाना मुश्किल हो जाता है. घर के माहौल में परिवर्तन कर ऐसे व्यक्ति से शराब छुड़वाई जा सकती है.इस तरह साएकेट्री में इस मुद्दे पर एक पूरे विषय का विकास हो जाता है. जबकि विनोबा भावे के पास इस विषय पर एक खंबे का उदाहरण ही है. विडंबना यह है कि संत और धर्म हर समस्या का एक उदाहरण देकर समाधान करने का दम भरते हैं और भोले लोग उसे स्वीकार भी कर लेते हैं.

Monday 10 January 2011

अन्याय का प्रतीक देवराज इंद्र

-राम प्रकाश अनंत
देवताओं का राजा इंद्र जब इतना ज़ालिम है तो देवता कितने होंगे यह विचार करने योग्य है. गौतम ऋषि की पत्नी के साथ बलात्कार किया जिसकी सज़ा आज के कानून में भी कम से कम 7 साल है.फिर इंद्र को देवतओं का राजा मानने वाले ही कहते हैं कि उस समय सतयुग था और या तो पाप होते ही नहीं थे और अगर होते थे तो उनका दंड बहुत सख़्त होता था. कहीं इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि इंद्र के इस कुकर्म के बाद किसी देवता ने उसका प्रतिकार किया हो या उसे कोई सज़ा हुई हो.
कुछ दिन पहले ही मैं हिंदुस्तान में हमारी महान नारियां के अंतर्गत किस्तवार छपी नल-दयमंती की कथा की एक किस्त पढ़ रहा था. मुझे याद आया जब मैं छोता था तब गांव में नाटक करने वाले लोग आते थे तभी मैंने नल-दयमंती का नाटक भी देखा था. कहानी इस प्रकार थी-दयमंती नाम की राज कुमारी का स्वयन्वर था.उसने नल नाम के राजकुमार की सुंदरता और वीरता की कहानियां सुन रखी थीं और वह उसी को पति बनाना चाहती थी.देवताओं का राजा इंद्र जो अपने इंद्रलोक में सुंदर सुंदर अप्सराओं के साथ रहता था दयमंती की सुंदरता से बहुत प्रभावित था और उससे शादी करना चाहता था.वह भी कुछ देवताओं के साथ स्वयम्वर में शामिल हुआ. जब उसे पता चला कि दयमंती नल को पति चुनना चाहती है तो उसने अपनी दिव्य शक्ति दे कई तरह के छल किए.जैसे कि दयमंती को सभी प्रतिभागी नल जैसे ही दिखाई देने लगे और उसे नल को पहचान ने में बहुत परेशानी हुई. अंततः दयमंती ने नल का वरण कर लिया तो इंद्र कुपित हो गया. उसने नल-दयमंती के सामने विकल्प रखा कि यदि वे शादी करेंगे तो उन्हें 12 वर्ष की घोर विपत्ति बर्दाश्त करनी पड़ेगी. उन दोनों ने उसे स्वीकार करते हुए शादी कर ली.उसके बाद नल-दयमंती 12 वर्ष तक वन में भटकते रहे और देवताओं का राजा इंद्र अपनी दिव्य शक्ति से उन्हें परेशान करता रहा.मसलन वे दोनों एक राजा के यहां छिप कर रह रहे थे. उन्होंने खूंटे पर हार टांग दिया तो इंद्र की दिव्य शक्ति से खूंटा हार को खा गया.
कैसी विडंबना है कि देवताओं का राजा कई दूसरे राजाओं की तरह ज़ालिम किस्म का था. वह अपने राज्य में न्याय के सामान्य सिद्धांत भी लागू नहीं करता था. उस धर्म युग से तो आज का कलयुग अच्छा है जिसमें कोई लड़की यदि अपनी पसंद के लडके से शादी करना चाहती है और कोई दूसरा लडका उससे ज़बर्दश्ती शादी करना चाहता है तो
कोर्ट भी लड़की क़ो उसकी पसंद के लडके से ही शादी करने का आदेश देगा. अगर दूसरा लडका उनके विरुद्ध शक्ति का इस्तेमाल करता है तो कोर्ट भी उसे अपराध ही मानेगा. लेकिन देवताओं का राजा इंद तो ग़लत-सही, न्याय-अन्याय से एकदम परे था.
कुछ लोग कहते हैं इंद्र कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक पदवीं थी. इंद्र के बारे में अधिकांशतः इसी तरह की कहानियां प्रचलित हैं.फिर तो और अधिक शर्म की बात है कि देवताओं के सभी राजा अन्याई और ज़ालिम किस्म के हुए हैं. ऐसे देवताओं का उनका भगवान ही मालिक है.

Sunday 2 January 2011

हिंदू धर्म एक जीवन पद्दति है?

अखबारो मे आज की बड़ी ख़बर हे-1100 मुस्लिम व ईसाई परिवारो की हिंदू धर्म मेरे वापसी. आर्ष गुरुकुल एटा के देवराज शास्त्री ने इन लोगो को शुद्धि यग्य कर घर वपसी क संकल्प दिलाया.मुख्य अथिति आर.एस.एस के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख प्रेम जी गोयल ने कहा-हिंदू धर्म ही नहीं भारतीय लोगो की जीवन पद्दति भी हे.
यह कैसी जीवन पद्दति है जो उसी जीवन पद्दति को मानने वाले दलितो के साथ पशुवत व्यवहार करती है और मुस्लिम व ईसाइयो को अछूत मनती है?जो घर लौट आए हैं उन्होने यह नहीं पूछा कि घर में हमरे साथ इन्सानो जैसा व्यवहार किया जएगा?तमाम गोयल व शाश्त्री अपने बच्चो की शदिया उनके घर मैं करेंगे? (24.12.10)

Saturday 1 January 2011

आरती का अर्थ

-राम प्रकाश अनंत
अभी मैं गणेश की आरती सुन रहा था. हर व्यक्ति ने कभी न कभी यह आरती सुनी ही होगी. इसमें करोडों लोगों की आस्था है. मेरा ध्यान आरती की इस पंति पर गया-बांझन को पुत्र देते निर्धन को माया. पित्रसत्तात्मक समाज में पुत्र रत्न सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.जहां तक कि किसी स्त्री के केवल लड़कियां होने पर समाज उसे वैसे ही प्रताड़ित करता है जैसे बांझ स्त्रियों को करता है.जबकि बांझ स्त्री को प्रताड़ित करना भी स्त्री के अस्तित्व व गरिमा को नकार कर उसके अस्तित्व को संतति संवृद्धि के साधन के रूप में स्वीकार करना ही है. करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक गणेश की आरती में बांझ स्त्ती के लिए पुत्र प्राप्ति की कल्पना से यही साबित होता है कि धर्मिक आस्थाएं सामंती सोच की द्योतक हैं और उनमें स्त्री एवं दलित की स्थिति बहुत अपमानजनक है.