Thursday 23 June 2011

देश साधू महत्माओं को सोंप देना चाहिए

इस देश में साधू, महात्मा, बापू, अध्यात्मिक गुरू जैसे लोगों की जो सामाजिक हैसियत बनी है उससे पता चलता है कि सत्ता में शीर्ष भागीदारी करने वालों में पूँजीपतियों, नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ- साथ इस धार्मिक वर्ग की भी सत्ता पर मजबूत पकड़ बनी है. बाबा रामदेव, साईं बाबा ,आशा राम बापू जैसे लोगों ने सत्ता के समानांतर अपना साम्राज्य खड़ा किया है. व्यवस्था पर मजबूत पकड़ रखने वाला यह वर्ग सत्ता वर्ग के लिए पूजनीय है और सत्ता वर्ग इस वर्ग के हर काले कारनामे की अनदेखी करता है. इस वक़्त इस वर्ग के दो बेहद प्रभावशाली व्यक्ति साईं बाबा और बाबा रामदेव लगातार चर्चा में बने हुए हैं. साईं बाबा का हाल ही में निधन हुआ है. इस वक़्त वे अपनी संपत्ति को लेकर चर्चा में हैं. माना जा रहा है कि वे 38 करोड़ के बेड रूम में सोते थे और करोड़ों की नगदी उनके बेड रूम से बरामद हुई है. वास्तव में अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि साईं बाबा ट्र्स्ट के पास कुल कितनी संपत्ति है. दूसरी तरफ़ बाबा रामदेव हैं जो 10 वर्ष पहले साइकिल से चलते थे. मात्र 10 साल में उन्होंने जितनी संपत्ति इकट्ठी की उतनी तो किसी उद्योगपति के लिए अपने उद्योग से इकट्ठा करना भी मुश्किल होगा. कनखल में 10 बीघा में फैला गोदाम और स्वामी रामदेव के भाई राम भरत का प्रशासनिक कार्यालय , औद्योगिक क्षेत्र हरिद्वार में दो फैक्ट्री जिनमें क़रीब 250 आयुर्वेदिक उत्पाद बनाए जाते हैं, 50 एकड़ में फैला पतांजली फूड एवं हर्वल पार्क जिसामे 10 यूनिट काम कर रही हैं, 150 बीघा में फैला पतांजली योगपीठ फेज़ 1, 450 बीघा में फैला पतांजली योगपीठ फेज़ 2, दिल्ली हाइ वे पर 200 बीघा में पतांजली नर्सरी और फ़ैक्ट्री, 800 बीघा में पतांजली योग ग्राम, पतांजली गोशाला जिसामे 500 से अधिक गायें पाली जाती हैं. सर्वप्रिय विहार कॉलोनी में तीन बड़ी बिल्डिंग्स जिनामें उनके रिश्तेदारों के निवास व गोदाम हैं. हिमाचल प्रदेश में तमाम संपत्ति, स्काटलेंड में एक द्वीप. यनी बाबा रामदेव के ट्रस्ट के पास अकूत संपत्ति है. यह बात केवल रामदेव और साईं बाबा के बारे में ही सच नहीं है बल्कि ऐसे धार्मिक गुरुओं व बाबाओं अच्छी खासी संख्या है जिन्होंने अपने इस धार्मिक धंधे से संपत्ति का अंबार लगा रखा है. संत निरंकारी(जिन्होने दिल्ली में जहाँगीर पुरी के पास अरबों की ज़मीन घेर रखी है) आशाराम अपने नाम का ताबीज़, अगरबत्ती आदि तक बेचने का उद्योगधंधा चला रहे हैं. खुद रामदेव ने इतनी दौलत ठगी कर के ही इकट्ठी की है. लडका ःओने की दवा बेचना, जवान होने की दवा बेचना, एड्स व केंसर के इलाज़ का दावा करना ये सब ठगी ही है. वास्तव में इतनी ठगी से भी इतनी दौलत इकट्ठी नहीं की जा सकती जितनी रामदेव के पास है. अगर उनके सारे क्रिया कलापों की पड़ताल हो तो पता चलेगा कि कितने अनुचित काम हैं जिनके द्वारा उन्होंने इस क़दर बेशुमार दौलत इकट्ठी की है. ऐसे ही न जाने कितने संत, बाबा, महात्मा अकूत संपत्ति इकट्ठी कर रहे हैं व्यवस्था जानबूझ कर ऐसे लोगों को बढ़ावा भी दे रही है. उसकी एक वजह यह है कि ये लोग आम आदमी का ध्यान व्यवस्था की खामियों से भटकाए रहते हैं. दिग्विजय सिंह आज यह बात कह रहे हैं कि बाबा कि संपत्ति की जाँच होनी चाहिए क्योंकि बाबा ने उनकी पार्टी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है वरना क्या अब तक वे सो रहे थे और उन्हें ख़्वाब में पता चला है कि बाबा ने इतनी संपत्ति ग़लत तरीक़े से पैदा की है. साईं बाबा इसका अच्छा उदाहरण हैं. साईं बाबा के ट्रस्ट के पास कितनी संपत्ति है अभी उसका ठीक - ठीक अनुमान भी नहीं है. जहाँ हाथ डालो वहीं से करोड़ो रुपया निकल आता है. फिर भी किसी पार्टी द्वारा, नेता या मीडिया के द्वारा उसकी आलोचना तक नहीं हो रही. उल्टे मीडिया उन्हें विकास का रोल मॉडल बता रहा है. साईं बाबा की मौत के बाद 26 अप्रेल के हिंदुस्तान ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल क़लाम का लेख 'परिवर्तन के अग्रदूत सत्य साईं बाबा' प्रकाशित किया है जिसमें उन्होंने कहा है - क्या निःस्वार्थ सामाजिक बदलाव का बाबा से बड़ा कोई रोल मॉडल हो सकता है. क़लाम ने यह बात यह जानते हुए लिखी है कि साईं बाबा ने यह तमाम दौलत ठगी कर के इकट्ठी की है. चमत्कारों के बल पर ही साईं बाबा भगवान बने थे और हैदराबाद टी.वी रिकॉर्डिंग पी.सी सरकार जैसे तमाम तरीकों से यह बात पूरी तरह साबित हो गई थी कि साईं बाबा के चमत्कार कोरी ठगी हैं. व्यव्स्था ने इन साधू महात्माओं, बाबा बापुओं को अकूत दौलत इकट्ठी क़रने की छूट दे रखी है उससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि जनता में ऐसा संदेश फैला रखा है जैसे बेशुमार दौलत इकट्ठी कर के वे परोपकार का भारी काम कर रहे हैं. लखों करोड की दौलत का मन माना उपयोग करके अगर कोई बाबा एक अस्पताल व स्कूल खुलवा दे और उसके बारे में यह कहा जाए- सामाजिक बदलाव का बाबा से बड़ा कोई रोल मॉडल हो सकता है'(हिंदुस्तान व अब्दुल क़लाम के अनुसार) तो बेहतर यही होगा कि इस देश की व्यवस्था इन बाबाओं के हाथ में सोंप दी जाए. यह व्यवस्था द्वारा स्थापित विचारों का असर है कि लोग इन मुद्दों पर तार्किकता से सोचने के बजाय व्यवस्था द्वारा स्थापित बातों को दोहराते हैं कि यह संपत्ति तो दान में आई है, यह तो ट्रस्ट की है, इसमें बाबा का क्या है वगैरह. वे यह भूल जाते हैं इस तरह तो बड़ी - बड़ी कंपनियों के मालिक भी यही कहते हैं कि वे उसके चेयरमेन हैं और एक अधिकारी की तरह वेतन लेते हैं.