Monday 28 March 2011

धर्म का धंधा

वर्तमान समय में धर्म एक कारोबार बन गया है. तमाम धर्म गुरू, उपदेशक, कथा वाचक, आदि ने धर्म के नाम पर संस्थाएँ खड़ी कर ली हैं. ये संस्थाएँ श्रद्धालुओं का तरह - तरह से शोषण करती हैं. धर्म के अगुआ अपनी तस्वीर का ताबीज़ बनवा कर बेच रहे हैं और अंधभक्त जनता उन्हे गले में लटकाए घूम रही है. गौर से देखने पर सारी बातें समझ में आ जाती हैं परंतु व्यवस्थित अध्ययन इन बातों को न सिर्फ़ अधिक स्पष्ट कर देता है बल्कि उसे ठोस आधार भी प्रदान करता है. ऐसा ही एक अध्ययन भारतीय मूल की शिक्षाविद श्रेया अय्यर की अगुआई में कैंब्रिज यूनीवर्सिटी ने किया है. अर्थशाश्त्र विभाग के एक दल ने दो वर्षों तक हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और जैन धर्मों के 568 संगठनो पर अध्ययन किया. इसमें हिंदुओं के 272 संगठन, मुस्लिम के 248 संगठन , ईसाइयों के 25 संगठन और 23 सिख एवं जैन संगठन शामिल थे. इसमें सात राज्यों के धार्मिक संगठनों की धार्मिक व गैर धार्मिक गतिविधियों पर अध्ययन किया गया है. इस अध्ययन के नतीजे रिसर्च होराइजंस के ताज़ा संस्करण में प्रकाशित हुए हैं. अध्ययन के निष्कर्ष इस प्रकार हैं - 'भारत में धर्म एक बड़ा कारोबार है. यहाँ के धार्मिक संगठन न सिर्फ़ व्यावसायिक संगठनों की तरह काम करते हैं, बल्कि लोगों की निष्ठा बरकरार रखने के लिए अपनी गतिविधियों में विविधता भी लाते रहते हैं . धार्मिक संगठनों के बीच बिजनेस संगठनों की तरह कड़ी स्पर्धा होती है. जिस तरह से कारोबारी संगठन बाज़ार में अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं , उसी तरह धार्मिक संगठन भी स्पर्धा में आगे निकलने के लिए, अपने आस पास के राजनीतिक आर्थिक और अन्य तरह के महौल को बदलते हैं. धार्मिक संगठन रक्तदान, नेत्र शिविर, चिकित्सा सेवा शिविर और ग़रीबों के लिए सामूहिक विवाह जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं ताकि अपने से जुड़े लोगों की निष्ठा को बरकरार रख सकें और अन्य लोगों को अपनी ओर खींच सकें. विचारधारा के मामलों पर धार्मिक संगठन उसी तरह का रुख अपनाते हैं जैसे कारोबारी संगठन अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश के लिए नीतियां अपनाते हैं. हम आम तौर पर धार्मिक संस्थाओ के बारे में भोले भाले लोगों के तर्क सुनते हैं कि वे लोग आखिर कोई खराब चीज़ को बता नहीं रहे, अच्छी बातें ही बताते हैं . इस अध्ययन से पता चलता है कि अच्छी बातें बताने के साथ ये लोग कैसे अपना धंधा चलाते. सवाल यह नहीं हैं कि वे अच्छी बातें बताते हैं कि खराब बातें. यह सवाल महत्वपूर्ण है कि कुछ अच्छी बातें व कुछ अच्छे कामों की आड़ में वे जो धंधा चलाते हैं वह समाज के लिए हनिकारक है . लेकिन सबसे खतरनाक है वे समाज की जो अवैज्ञानिक सोच उत्पन्न करते हैं . इससे न सिर्फ़ समाज का विकास रुकता है बल्कि समाज समय से पीछे चला जाता है