Saturday 16 July 2011

पंचतंत्र की कहानी जैसे हैं पुराण

हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताएं पुराणों में वर्णित कहानियों से जुड़ी हैं. जिस तरह पंचतंत्र में नैतिक व बौद्धिक ज्ञान की बातें शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से समझाया गया है वैसे ही ईश्वर संप्रभुता एवं असीमित शक्ति को सिद्ध करने के लिए पंचतंत्र की कहानियों की काल्पनिक कहानियों की तरह ही पुराणों में कहानियों गढ़ी गई हैं. प्रायः हर धार्मिक कर्मकाण्ड के पीछे ऐसी ही कहानियां जुड़ी हुई हैं. ये कहानियां पूरी तरह काल्पनिक हैं इस बात का पता इसी से चाल जाता है कि किसी तथ्य के पीछे एक पुराण में एक कहानी दी है तो उसी तथ्य के पीछे दूसरे पुराण में अलग कहानी दी है. इससे पता चलता है कि वे दोनों ही कहानी झूठी हैं. जैसे- मथुरा के नजदीक स्थिति गोवर्धन पर्वत का हिंदू धर्म में विशेष महात्म्य है. बताया जाता है द्वापर में भगवान के अवतार श्री कृष्ण ने उसे एक उँगली पर उठाएं रखा था इसलिए वह पर्वत हिंदुओं के लिए पूज्य हो गया. हिंदू अपने पापों से मुक्ति के लिए अथवा किसी कार्य सिद्धि के लिए इस पर्वत की पैदल परिक्रमा करते हैं. वैसे तो इस पठारनुमा पर्वत की परिक्रमा लोग वर्ष भर लगाते हैं. परंतु मुडिया पूर्णिमा(गुरु पूर्णिमा) पर लगे मेले में इस परिक्रमा का महत्व बढ़ गया है और कल 15.07.11 को इस मेले में क़रीब 75 लाख(हिंदुस्तान अखबार के अनुसार)लोगो ने इस पर्वत की परिक्रमा लगाई. इसका महिमा मंडन अखबार ने इस प्रकार किया है- गुरुपूर्णिमा पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. ट्रेनों में चढ़ने और उतरने में श्रद्धालुओं की सांसे फूल गईं व्यवस्था को बनाए रेलवे अधिकारियों के पसीने छूट गए. स्टेशन पर पैर रखने की भी जगह नहीं थी. पूछ्ताछ केंद्र पर भी लोगों भीड़ उमड़ी पड़ रही थी. शुक्रवार को मथुरा जंकशन पर पहुँचने वाली ट्रेनों में तिल भर जगह नहीं मिल रही थी. सोचने की बात है कि पिछले दिनों इस तरह के तमाम धार्मिक भीड़ भाड़ में लगातार ऐसी घटनाएं घटी हैं जिन में दर्जनों लोग मारे गए हैं. प्रतिवर्ष मंदिरों भगदड़ मचने और उसमें लोगों के मारे जाने का जैसे दस्तूर सा बन गया है. इसके बावजूद मीडिआ इस तरह के धार्मिक उत्सवों का जोर शोर से प्रचार व महिमा मंडन करता है. इसकी मुख्य वजह यही है कि धर्म राज्य व्यवस्था की तमाम जन समस्स्याओं से जनता का ध्यान हटाने का एक साधन है और पूँजीपतियों का मीडिआ धर्म का उपयोग इसी काम के लिए करता है. अब ज़रा इस बात पर गौर करें कि जिस मान्यता के आधार पर 75 लाख लोगों ने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाई उसकी सच्चाई क्या है. आदिवाराह पुराण के अनुसार त्रेता में समुद्र पर सेतु- बंधन के समय हनुमान के मन में विचार आया कि में बड़ा पत्थर सेतु निर्माण के लिए लाऊँ. वे उत्तरांचल से गोवर्धन को उखाड लाए. वे ब्रज से गुज़र रहे थे कि उन्हें पता चला कि सेतु निर्माण हो चुका है और उन्होने गोवर्धन की ब्रज में ही स्थापना कर दी. गर्गसंहिता के अनुसार एक बार पुलस्त्य ऋषि द्रोणाचल पर्वत पर पहुंचे वहाँ वे द्रोणाचल के पुत्र गोवर्धन को देखकर मंत्र मुग्ध हो गए और उसे काशी ले जाने की इच्छा व्यक्त की. द्रोणाचल ने शाप के डर से स्वीकृति तो दे दी पर यह भी कह दिया कि इसे एक बार जहाँ स्थापित कर दोगे वहीं स्थापित हो जाएगा. ब्रज में आकर गोवर्धन ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया और पुलस्त्य के लिए वह बोझ असहनीय हो गया. अतः वे गोवर्धन को तिल तिल भर रोज़ घटने का शाप देकर चले गए. इन दोनों कहानियों में कोई तालमेल नहीं है. अगर कोई व्यक्ति थोड़े से तर्क के साथ सोचे तो स्पष्ट हो जाएगा कि ये दोनों कहानियां पंचतंत्र की तरह गढ़ी हुई कहानियों के सिवा कुछ नहीं हैं.

Wednesday 6 July 2011

माया महाठगिनी नहीं है

धर्म शास्त्रो में धन दौलत को माया कहा गया है. यह भी कहा जाता है कि माया भ्रमित करने वाली होती है, महाठगिनी होती है आदि आदि. वैराग्य शब्द का अर्थ भी यही है मतलब सांसारिकता से लगाव समाप्त हो जाना. इसमें भी धन दौलत से लगाव न रखना वैराग्य का मुख्य लक्षण माना गया है. धन दौलत को माया कहा गया है. माया ठगिनी एक मुहावरा बन गया है. माया मोह को परम सत्ता यानी ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में बाधा बताया गया है. दर अस्ल सत्ता वर्ग के लिए धर्म का यही रूप सबसे अधिक उपयोगी है. वह चाहता है धर्म उपदेशक जनता में अधिक से अधिक इस विचार का प्रचार करें. दर अस्ल पैसा अच्छे जीवन स्तर के लिए एक आवश्यक शर्त है. आज के दौर में व्यवस्था ने आम आदमी के सामने बेहद मुश्किलें खड़ी कर दी हैं . पैसे की कीमत बहुत अधिक गिर गई है. गाँव में पहले लोग पूरे दिन भूखे बाज़ार से लौट आते थे पर सौ का नोट नहीं तुड़ाते थे. अब लोग एक सिगरेट के लिए एक हज़ार का नोट तुड़ा देते हैं. पैसे का अवमूल्यन इस क़दर हुआ है कि जिसके पास करोड रुपया भी है वह भी अपना व बच्चों का भविष्य निश्चिंत होकर सुरक्षित महसूस नहीं करता. यही कारण है कि सामाजिक मूल्यों में बेतहासा गिरावट आई है और हर कोई किसी भी उचित या अनुचित तरीक़े से अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है. धर्म उपदेशक या धर्म गुरू जो लाखों की भीड़ ठेले फिरते हैं कितना ही कहें माया ठगिनी है, माया मोह छोड़कर ईश्वर का भजन करो पर सच्चाई यह है कि पूँजीवदी व्यवस्था ने पैसे के महत्व को इस क़दर सर्वमान्य कर दिया है कि नितांत धार्मिक लोग भी धर्म के हर पाखंड को मान लेते हैं पर माया ठगिनी वाली बात धार्मिक या सामाजिक चर्चा में मानते हुए भी उसे जीवन में नहीं उतार पाते. यही कारण है कि हर धर्म गुरू के पीछे लोगों की लंबी लाइन लगी है फिर भी सामाजिक व नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट आ रही है. यह बात सिर्फ़ आम धार्मिक लोगों के बारे में ही नहीं है, धर्म को संचालित करने वाले पुजारी व पुरोहित वर्ग में तो और भी घ्रणित रूप में उभर कर आती है. यही वजह है कि धार्मिक क्रिया कलाप संचालित करने वाले आम पुजारी ही नहीं जिन्हें माया मोह से ऊपर समझा जाता है और आम धार्मिक व्यक्ति की दृष्टि में सांसारिकता से ऊपर उठ गया है या भगवान की श्रेणी में आ गया है उसके मरने के बाद उसके पीछे अथाह धन दौलत पता चलती है. हाल ही में साईं बाबा की मौत के बाद लाखों करोड़ की प्रोपर्टी इसका अच्छा उदाहरण है. बाबा रामदेव आशा राम बापू सहित तमाम धर्म गुरू इसके अन्य उदाहरण हैं. अभी तिरुवंतपुरम, केरल के श्री पदमनाभन स्वामी मंदिर में जो एक लाख करोड़ से भी अधिक का खजाना मिला है उसे भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए. लेकिन महत्वपूर्ण है इनके प्रति सत्ता का रवैया जानना. मीडिया पौने दो लाख करोड के ए. राजा के घोटाले को घोटाला मानता है परंतु एक लाख करोड से अधिक के इस घोटाले को जनता में सूचना देने लायक भी नहीं समझता( हिंदुस्तान सहित आज के कई अखबारो ने यह खबर नहीं छापी है.) मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यह संपत्ति मंदिर की ही रहेगी.