Friday, 18 October 2013

सामंतवादी सपने में चलता देश

तेरह अक्टूबर को दतिया के एक मंदिर में भगदड़ मचने से करीब 115 लोग मर गए और सौ से अधिक घायल हो गए.उस से एक दिन पहले मैंने सावधान इंडिया में एक कार्यक्रम देखा जिसमें दिखाया गया था कि एक व्यक्ति का दूसरे शहर में ट्रांसफर होता है.वहां के एक स्कूल में उसकी बेटी दाखिला लेती है,जो जींस पहनकर स्कूल जाती है.वहां एक लड़का अपने साथियों सहित भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसी लड़कियों को धमकाता है और उसके खौफ से ऑटो वाले जींस पहनने वाली इन लड़कियों को स्कूल छोड़ने नहीं जाते.उस लड़की ने पुलिस में कंप्लेंट की पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.लड़की की माँ ने उस गुंडे का विरोध किया तो उसने उसी का मर्डर कर दिया.पुलिस ने उसे पकड़ा पर एक नेता ने यह कह कर उसे उसे छुड़वा दिया कि वह भारतीय संस्कृति की रक्षा कर रहा है.लड़की ने अपने स्कूल की छात्राओं के साथ मिलकर प्रदर्शन किया और अंत में उसे गिरफ्तार किया गया.यह टीवी प्रोग्राम सत्य घटनाओं पर आधारित होता है.
आठ-दस दिन से लाइफ ओके पर महादेव सीरियल में तंत्र-मन्त्र को बढ़ावा देने वाली चीज़ें दिखाई जा रही हैं.इस तरह के सीरियलों में तंत्र-मन्त्र,जादू-टोना,भाग्य,ब्राह्मणवाद और धार्मिक अंधविश्वासों को बेहद मज़बूती से स्थापित किया जाता है और सबसे खतरनाक यह है कि इन में यह स्थापित किया जाता है कि यह सब देवी-देवता व ईश्वर की इच्छा से होता है और उसके पीछे उनका मूल उद्देश्य मानवता की भलाई करना है.इन सीरियलों के अलावा ज्योतिष,तंत्र-मन्त्र,भूत-प्रेत जैसी तमाम चीज़ें चैनलों पर रात-दिन चलती ही रहती हैं.
        कुछ दिन पहले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हुई थी वे जन्तर-मंतर ,जादू-टोना और तथाकथित भगवानों के विरुद्ध एक क़ानून बनाने की मांग कर रहे थे और इस मांग का भाजपा,शिवसेना सहित कई हिन्दू संगठन विरोध कर रहे थे.उसके बाद भगवान को अपना यार बताने वाले,धार्मिक गुरू आसाराम पर बलात्कार का आरोप लगा और उसके साथ ही उसके पुत्र नारायण साईं पर बलात्कार का आरोप लगा है और वह अभी तक पुलिस की पूछताछ से भाग रहा है और इन दोनों के तमाम अपराधों का रोज़-रोज़ खुलासा हो रहा है.भाजपा आसाराम का समर्थन करती रही है और कुछ हिन्दू संगठन के लोग चैनलों पर आसाराम के बचाव में जमे हुए हैं.
   अभी एक साधू ने सपना देखा है कि उन्नाव में एक हज़ार टन सोना गड़ा है.एक केन्द्रीय मंत्री साधू का भक्त है और उसने सरकार से सिफारिश कर वहां खुदाई शुरू करा दी है.इससे यह पता चलता है कि इस देश में साधू कि हैसियत क्या है .
  चंद दिनों में घटी इन तमाम घटनाओं को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इस देश में अंधविश्वास व धर्म की जड़ें कितनी गहरी हैं.ऐसे में आसाराम जैसे लोग भी करोड़ों लोगों को धर्म के नाम पर इधर से उधर रौंदे फिर रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

   आज़ादी के बाद देश में पूंजीवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था ज़रूर कायम हुई परन्तु पुरानी सामंतवादी व्यवस्था समाप्त नहीं हुई और वह अपने धार्मिक स्वरूप में कट्टरता के साथ उभरती रहती है.एक तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उसकी राजनीतिक शाखा भाजपा जैसी घोषित धार्मिक राजनीतिक पार्टियां हैं तो दूसरी ओर दूसरी राजनीतिक पार्टियां अवसरानुसार अपने फ़ाइदे के लिए धर्म का साम्प्रदायिकता की हद तक इस्तेमाल करने से नहीं हिचकिचाती हैं.अपने धार्मिक स्वरूप में सामंतवाद अभी भी भारतीय समाज में गहराई तक जड़ें जमाए हुए है और हमारी राज्य व्यवस्था उसकी जड़ों को निरंतर खाद-पानी देती है.लोगों की धार्मिक जड़ता उनके लिए फ़ाइदे की चीज़ है.ऐसे में रामदेव व आसाराम जैसे लोग धर्म की आड़ में अपना हज़ारों करोड़ का गोरखधंधा चला रहे हैं,करोड़ों लोग धर्म उपदेशकों के पीछे दौड़े फिर रहे हैं , पूजास्थलों में मारे फिर रहे हैं और वहां मची भगदड़ में अपनी जान गँवा रहे हैं,धार्मिक अंधविश्वासों का विरोध करने वालों को धार्मिक संगठन न सिर्फ धमकियां दे रहे हैं बल्कि दिन दहाड़े उनकी हत्या भी कर रहे हैं,संस्कृति बचाने के नाम पर महिलाओं को गुंडे दौड़ा-दौड़ा कर पीट रहे हैं और प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए. समाज को धार्मिक कूपमंडूकता से निकालने के लिए इसे बढ़ावा देने वाले हर मोर्चे के विरुद्ध मोर्चा खोलना पडेगा और यह काम इस लिए आसान नहीं होगा क्यों कि राज्यसत्ता इन्हें पूरा संरक्षण देती है.

Friday, 30 August 2013

आसाराम को कौन खाद-पानी देता है


आसाराम पर बलात्कार जैसे घिनौने  आरोप के बाद यह बात लगातार चर्चा में आ रही है कि गलती उन लोगों की ही है जो अपनी स्त्रियों को आसाराम जैसे लोगों के पास भेजते हैं,इतना सब कुछ जानने के बाद भी आसाराम जैसे लोगों के अंधभक्त बने रहते हैं.ऐसे समय में इस तरह की चर्चा होना अस्वाभाविक नहीं है.लेकिन इस तरह की चर्चा करने वालों में वे लोग भी हैं जो भले ही आज आसाराम के विरोध में खड़े हैं पर वे आसाराम में न सही उसके जैसे किसी दूसरे आसाराम में विश्वास करते हैं.उनसे इस विषय पर बात करोगे तो वे यही तर्क देंगे कि उनका आसाराम असली है,वह ऐसा बलात्कारी और ढोंगी नहीं है.इस तरह देखा जाए तो सत्रह अगस्त तक उनका आसाराम भी ढोंगी और बलात्कारी नहीं. दरअस्ल देश में जबरदस्त अंधश्रद्धा है उसके बहुत सारे कारण समाज में मौजूद हैं.यह कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि डॉ डाभोलकर ने अन्धविश्वास विरोधी क़ानून बनवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी और उनके इस बिल में अपने आप को भगवान कहने वालों के लिए सज़ा की बात कही गयी थी.देश सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक भाजपा डाभोलकर के विरोध में थी और तथाकथित भगवान् आसाराम पर बलात्कार का आरोप लगते ही वह उसके पक्ष में आ गयी.देश में लोग इस कदर अन्धविश्वासी क्यों बने हुए हैं इस पर तो पूरी एक पुस्तक लिखने की ज़रुरत है हम फौरी तौर पर कुछ कारणों पर नज़र डाल लें तो भी कुछ हद तक बात स्पष्ट हो जाएगी.
आसाराम का मामला धार्मिक है और लोगों की श्रद्धा और आस्था का मामला है.यह कहा जा सकता है कि श्रद्धा होनी चाहिए अंधश्रद्धा नहीं.अगर गौर से देखा जाए तो धर्म के मामले में श्रद्धा और अंधश्रद्धा जैसा कोई अंतर होता ही नहीं है.जो धार्मिक व्यक्ति यह कहता है कि अंधश्रद्धा नहीं होनी चाहिए वह कुछ सेलेक्टिव अंधश्रद्धाओं में विश्वास करता है जिन्हें वह श्रद्धा कहता है, इसी तरह दूसरा धार्मिक व्यक्ति कुछ दूसरी अंधश्रद्धाओं में विश्वास करता हो वह पहले वाले की श्रद्धाओं को अंधश्रद्धा कह सकता है.इस बात को यों भी समझ सकते हैं कि एक बेहद कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति धर्म के मामले में कोई तर्क न कर पाए और आपसे सीधे तौर पर कह दे,आपको मानना है मानो हम तो यों ही मानते हैं,मानो तो देव नहीं मानो तो पत्थर. एक बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति कुछ देर आपसे बहस करे और उसके बाद कह दे यह तर्क का विषय नहीं है आस्था का विषय है.दरअस्ल धर्म के मामले में यह मूल मन्त्र बन गया है.यही बात आसाराम के भक्तों पर लागू होती है.आसाराम ने बलात्कार किया है या नहीं किया है उनके लिए यह तर्क का विषय है ही नहीं उनके लिए तो यह आस्था का विषय है कि आसाराम भगवान हैं और वे ऐसा कर ही नहीं सकते.इसी तरह दूसरे लोग जो इसे इनकी अंधश्रद्धा कह रहे हैं, वे कभी यह मानने को तैयार नहीं होंगे कि हमारे तीन-तीन ईश्वर एक महिला सती अनुसुइया को नंगा होकर खाना खिलाने को कहें या देवताओं का राजा इंद्र अहिल्या नाम की महिला के सत की परिक्षा करने के लिए उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए इस तरह की बातों में विश्वास करना अंधश्रद्धा है.आसाराम जैसा ही काम कोई देवता या ईश्वर करे तो लोगों की आस्था में देवता या ईश्वर के प्रति कोई कमी नहीं आती ऐसे ही आसाराम के भक्तों में भी अपने भगवान् के प्रति कोई कमी नहीं आती.
समाज में अंधश्रद्धा के इतने साज़ो-सामान हैं कि आसाराम जैसे दुराचारी व अपराधी व्यक्ति के भी लाखों-करोडो अंधभक्त आसानी से बन सकते हैं.सबसे पहले तो हमारी राजव्यवस्था ही इसे बेहद बढ़ावा देती है.आसारामों से अटल बिहारी,आडवानी,इंद्रा गांधी सब आशीर्वाद लेकर यह सन्देश देते हैं कि इन्ही कि कृपा से देश चल रहा है.सिर्फ नेता ही नहीं कोर्ट तक इन लोगों को बढ़ावा देता है.निर्मल बाबा कृपा बाँटते हैं.वे भक्तों को गोलगप्पे खिलाकर या काला कुत्ता दिखा कर कृपा देते हैं.इस पर किसी ने जनहित याचिका डाल दी तो कोर्ट ने फैसला दिया कि वे ऐसे उल-जुलूल उपाय न बताएं.मतलब वे अपना धंधा चलाएं पर लोगों की आस्था के साथ इतना मूर्खता पूर्ण मजाक न करें.निर्मल बाबा मान गए .टीवी देखिए वे आजकल लोगों की आस्था से इतना मूर्खतापूर्ण मजाक नहीं करते.राज्यव्यवस्था ऐसा क्यों चाहती है यह समझना भी कोई मुश्किल काम नहीं है.वर्तमान व्यवस्था ने आम आदमी की ज़िंदगी इतनी मुश्किल बना दी है कि अगर वह उसे चला पाने में समर्थ हो जाता है तो उसे दैवीय चमत्कार समझने लगता है.नौकरी पाने के लिए,केस जीतने के लिए बच्चों के रिश्तों के लिए हर काम इतना मुश्किल है कि लोग सहज ही ज्योतिषी,बाबा, पीर फकीर के चक्करों में पड़ जाते हैं .एक परचून की दूकान डालने से लेकर बिजनेस डालने तक ज़बरदस्त संघर्ष है.ऐसे में आसाराम उन्हें एक ताबीज़ दे दे और उनका धंधा चल जाए तो वे आसानी से उसके भक्त बन जाते हैं.इस केस में भी लड़की के पिता का साधारण सा परिवार था .उन्होंने ट्रांसपोर्ट का काम डाला,वे आसाराम से मिले,मेहनत की धंधा चल निकला और पूरा परिवार आसाराम का भक्त बन गया.ऊपर से व्यवस्था में इतनी अराजकता है कि लोगों को लगता है सब कुछ ईश्वर ही चला रहा है.
    समाज पर सबसे अधिक प्रभाव मीडिया का है.टीवी,फ़िल्में ,अखबार हर जगह तंत्र,मन्त्र,चमत्कारों का बोल बाला है.हनुमान यंत्र शुभ धन वर्षा जैसे कितने ही विज्ञापन टीवी पर आते हैं जो हर समस्या तीन-चार हज़ार में हल कर देते हैं.महादेव,सावित्री जैसे सेरिअलों में ही नहीं जोधा-अकबर जैसे ऐतिहासिक सीरियलों में भी अंधविश्वासों को बढ़ावा दिया जाता है. गणेश के दूध पीने की खबरें चंद मिनिटों में दुनिया भर में फ़ैल जाती हैं.लोगों को अन्धविश्वासी बनाए रखने में मीडिया ज़बरदस्त माहौल तैयार करता है लोगों का यही अंधविश्वास आसारामों को जन्म देता है.
    तमाम सामाजिक वजहों से परिवारों में तमाम तरह के धार्मिक पाखण्ड चलते रहते हैं और ऐसे परिवारों में बच्चा पैदा होता है तो उसमें यही पाखण्ड जन्मजात लक्षणों की तरह पनप जाते हैं.बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर बन जाए,इंजीनियर बन जाए या वैज्ञानिक बन जाए इन लक्षणों को अपने अन्दर से निकालना बहुत मुश्किल होता है. यही वजह है कि आसारामों के अंधभक्तों में डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक सब होते हैं

Sunday, 21 April 2013

दुनिया को नर्क बना रखा है देवों के देव महादेव ने


             
        २८ मार्च को राजस्थान के स्वामी माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी के रहने वाले एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी,भाई,पुत्र व पुत्री के साथ मिलकर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। उसने मरने से पहले एक विडियो बनाया और उसमें बताया कि वे लोग क्यों आत्महत्या कर रहे हैं. पुलिस छानबीन से पता चला कि वह परिवार अति धार्मिक प्रवृत्ति  का था .धार्मिक आयोजनों में काफी हिस्सा लेता था, यहाँ तक कि टीवी पर भी धार्मिक सीरियल ही देखता था। वह महादेव सीरियल से बहुत प्रभावित था।बहुत से लोग ये तर्क दे सकते हैं कि महादेव सीरियल तो पूरा देश देखता है और किसी ने तो आत्महत्या नहीं की।अब वह परिवार मूर्ख था तो इसमें महादेव सीरियल का क्या दोष है।  
      हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और यह विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज चाँद सितारों तक की दूरियां तय कर ली हैं।लेकिन विडम्बना है कि तमाम तरक्की के बाद भी आज समाज की सोच आदिम सामंती संस्कृति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाई है।उसकी बड़ी वजह यह है कि शासक वर्ग ने समाज का ऐसा ताना वाना बुन रखा है कि वह अपने हित के लिए समाज की सोच को ऊपर नहीं उठने देना चाहता।यही वजह है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी समाज का पढ़ा लिखा तबका भी अपनी पुरातनपंथी सोच से बाहर नहीं आ पाया है। उसकी वजह यही है कि  शासक वर्ग के पास जनता की चेतना को कुंद करने के तमाम हथियार हैं। वह चाहता है कि जनता की समझ वहीं तक विकसित हो जहां तक उसके हित में है।यह बिना वजह नहीं है कि निर्मल बाबा(और ऐसे तमाम बाबाओं)के दरबार में जनता की काफी भीड़ जुटती है,पढ़े लिखे लोग उसके बेहूदे उपाओं पर विशवास करते हैं,टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा के कार्यक्रम छाए रहते हैं।
                  विजुअल मीडिया का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तमाम चैनल जिस तरह राशिफल,तंत्र-मन्त्र,बाबाओं और धार्मिक सीरियलों को परोसते हैं उसने जनता की सांस्कृतिक चेतना को मटियामेट कर दिया है और वह उसे फिर उसी आदिम युग में ले जाना चाहते हैं।ऐसे में किसी परिवार के पांच सदस्य ज़हर खाकर देवों के देव महादेव से मिलने चले जाते हैं या हज़ारों महिलाएं डाइन बता कर मार दी जाती हैं या तंत्रमन्त्र के चक्कर में लोग पड़ौसियों, जहां तक कि अपने ही बच्चों की बलि दे देते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।  अन्धविश्वास से लेकर परम शक्ति यानी ईश्वर से सम्बंधित जो सीरियल टीवी पर दिखाए जाते हैं वे हमारी सांस्कृतिक चेतना को एक ही जगह ले जाते हैं परन्तु इनमें एक बहुत बड़ा अंतर है। हो सकता है एक धार्मिक व्यक्ति तंत्र मन्त्र को सही मानता हो और दूसरा ग़लत या एक धार्मिक निर्मल बाबा को ढोंगी मानता हो और आशा राम बापू का भक्त हो जबकि दूसरा आशा राम को ढोंगी मानता हो और निर्मल बाबा का भक्त हो लेकिन जो इस तरह के धार्मिक सीरियल हैं उनमें सभी धार्मिक  अंधी श्रद्धा रखते हैं। इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।
         कुछ दिन पहले टीवी पर ऐसे बहुत से विज्ञापन आ रहे थे जो विशेष छूट के साथ तीन-साढ़े तीन हज़ार में लक्ष्मी यंत्र कुबेर की चाबी आदि देते थे जिसकी स्थापना के बाद खरीदने वाले का घर दौलत से भर जाएगा। बहुत से धार्मिक व्यक्ति इस पर विशवास नहीं करते होंगे।लेकिन यही बात महादेव सीरियल में कुबेर वाले एपीसोड में दिखाया गया है जिस पर हिन्दू माइथोलोजी में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति विश्वास करेगा।जहां तक कि उसके विश्वास करने या न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता यह बात उसके अवचेतन में सीधे प्रवेश कर जाती है।कुबेर में अपने धन के प्रति लोभ पैदा हो जाता है।महादेव उसे फटकारते हैं कि लोगों में असंतोष बढ़ रहा है,दुनिया में जिनके पास धन है उनका दायित्व है कि वे अपना धन संसार आवश्यकताओं में लगाएं।दरअस्ल यहाँ महादेव पूंजीवाद के असमानता के अन्तर्विरोध को उसी उपदेशात्मक तरीके से हल कर देते हैं जैसे अब तक गली मोहल्ले के कथा वाचक हल करते आ रहे हैं।साथ ही वे निर्धनों को आश्वस्त करते हैं की वे अपने काम में लगे रहें उन्होंने कुबेर को डांट कर ठीक कर दिया है वह एक दिन आपके लिए भी अपना खजाना खोल देगा।
             राजा- महाराजाओं के समय में लिखी गईँ ये  धार्मिक कथाएं शासक वर्ग के हितों के लिए वर्तमान समाज को पुराने सामंती मूल्यों की जकडबंदी में जकड़े रखना चाहती हैं। देवताओं का राजा इंद्र है।उसमें वे सारे गुण हैं जो उस समय राजा महाराजाओं में होते थे।धूर्तता,मक्कारी,अय्याशी और हमेशा अपने राज्य के लिए चिंतित। इससे यही पता चलता है कि जिस दौर में ये कथाएँ लिखी गईं उस दौर में इन्हें इसी तरह सोचा जा सकता था। लेकिन अफ़सोसजनक यह है कि इन कथाओं का धार्मिक जनमानस में काफ़ी प्रभाव है और शासक वर्ग जनता की मानसिकता को उन्हीं सामंती मूल्यों में जकड़े रखने के लिए इन कथाओं का इस्तेमाल कर रहा है।
        महादेव बार -बार यह बात दोहराते हैं कि कैलास, उनका परिवार सिर्फ उनका परिवार नहीं है,वह संसार के लिए एक आदर्श है।सही भी है।महादेव यानी इस सृष्टि के ईश्वर को शादी और बच्चे पैदा कर परिवार बसाने की भला क्या ज़रुरत है।उन्होंने यह सब संसार के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए किया होगा। तब कुछ महिलाएं व पुरुष विवाह नाम की संस्था को स्त्री के विरुद्ध बताते हैं वे भी सही ही बताते हैं।क्योंकि महादेव ने परिवार का जो आदर्श स्थापित किया था वही अभी तक चला आ रहा है और उसे बदलने की ज़रुरत है।इस पारिवारिक व्यवस्था में महादेव विवाहित पुरुष का आदर्श हैं और पार्वती विवाहित स्त्री का।मदादेव एक दूसरे ईश्वर नारायण के साथ मिलकर संसार की फर्जी चिंताओं (ध्यान रहे ईश्वर दुनिया की वास्तविक चिंताओं से निरपेक्ष है) में व्यस्त रहते हैं और पार्वती के तीन काम हैं- स्वामी के मूड को दुरुस्त रखना,बच्चों के भरण पोषण के लिए लड्डू बनाना और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना। वे एक अच्छी गृहणी की तरह हमेशा चिंतित रहती हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए एक भवन का निर्माण कर लिया जाए। वे बार -बार रट लगाए रहती हैं स्वामी बच्चों की सुरक्षा के लिए भवन का निर्माण कर लिया जाए। महादेव आदर्श स्थापित करते हैं कि प्रकृति के निकट रहने का आदर्श स्थापित करते हैं कि इंसान को भवन की आवश्यकता ही नहीं है।आज जब करोड़ों लोगों के सर पर मकान नहीं है उनके लिए महादेव का यह आदर्श कितना सुन्दर है।कभी कभी महादेव यह कह कर कि पार्वती तुम आदि शक्ति हो यह सन्देश देते हैं कि दिव्य शक्तियों से संपन्न ईश्वर पुरुष रूप में ही नहीं स्त्री रूप में भी होता है।लेकिन पार्वती की शक्ति का संचालन महादेव के अधीन तो है ही वे अपनी शक्ति का उपयोग तभी करती हैं जब महादेव उसकी भूमिका बना देते हैं और उनके बच्चों पर कोई गहरा संकट आने को होता है।वे दुर्गा बन कर महिषासुर को मारती हैं क्योंकि वह उनके पुत्र कार्तिकेय पर हमला करता है।वे काली का रूप धरती हैं क्योंकि हुन्ड नाम का असुर उनके भावी दामाद नहुस को मारना चाहता है।वे एक अच्छी माँ की तरह बेहद चिंतित रहते हुए नहुस को   तत्काल विवाह योग्य बनाने की जिद पकड़ लेती हैं।महादेव के समझाने के बावजूद पार्वती का बार बार जिद पकड़ना समाज में प्रचलित कहावत तिरिया हठ और बाल हठ की ही पुष्टि करता है. पार्वती की जिद पर महादेव अपने जादू से दस-बारह साल के दिखाई देने वाले नहुस को विवाह योग्य पूर्ण युवा बना देते हैं।स्त्री होते हुए भी पार्वती का नहुस को विवाह योग्य बनाने के लिए इतना चिंतित होना और महादेव का उसे विवाह योग्य बना देना सामंती युग में अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से विवाह करने की प्रवृत्ति का ही प्रतीक है।कैसी विडम्बना है की देश में जब बहस छिड़ी हुई है कि लड़की की यौन स्वीकृति की उम्र सोलह साल हो या अठारह साल हो ऐसे समय में महादेव एक  कम उम्र के लडके को विवाह योग्य बना कर अपनी पुत्री जो विवाह योग्य नहीं है उससे शादी करने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं।आधुनिक युग में भी लड़कियां अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं महादेव सीरियल इसकी सार्थकता की पुष्टि करता है।महादेव की पुत्री बाल्यावस्था में नहुस से विवाह करने के लिए तपस्या करने चली जाती है और लक्ष्मी की पांच बहनें अपने जीजा नारायण से विवाह करने के लिए घोर तपस्या करती हैं।जो कामकाजी महिलाएं यह शिकायत करती हैं कि उनके पति घर में सहयोग नहीं करते उन्हें समझना चाहिए की महादेव और पार्वती ने यही आदर्श प्रस्तुत किया है।
           महादेव जैसे सीरियल समाज की चेतना का जिस तरह क्षरण करते हैं वह समाज की सोच को सदियों पीछे ले जाते हैं। धार्मिक संस्कार किस कदर व्यक्ति की चेतना में अन्दर तक घुस जाते हैं कि व्यक्ति चेतना के स्तर पर उनसे मुक्त भी हो जाए तब भी अवचेतन से ये संस्कार आदत के रूप में प्रदर्शित होते रहते हैं और व्यक्ति को उसका पता भी नहीं चलता।लोग डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक बन जाते हैं फिर भी उनकी सोच इन्हीं संस्कारों की वजह से एक अनपढ़ अन्धविश्वासी व्यक्ति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाती।उनकी इस सोच को बनाए रखने में रामायण,महाभारत,महादेव जैसे सीरियलों का बड़ा योगदान है।