Wednesday 6 July 2011

माया महाठगिनी नहीं है

धर्म शास्त्रो में धन दौलत को माया कहा गया है. यह भी कहा जाता है कि माया भ्रमित करने वाली होती है, महाठगिनी होती है आदि आदि. वैराग्य शब्द का अर्थ भी यही है मतलब सांसारिकता से लगाव समाप्त हो जाना. इसमें भी धन दौलत से लगाव न रखना वैराग्य का मुख्य लक्षण माना गया है. धन दौलत को माया कहा गया है. माया ठगिनी एक मुहावरा बन गया है. माया मोह को परम सत्ता यानी ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग में बाधा बताया गया है. दर अस्ल सत्ता वर्ग के लिए धर्म का यही रूप सबसे अधिक उपयोगी है. वह चाहता है धर्म उपदेशक जनता में अधिक से अधिक इस विचार का प्रचार करें. दर अस्ल पैसा अच्छे जीवन स्तर के लिए एक आवश्यक शर्त है. आज के दौर में व्यवस्था ने आम आदमी के सामने बेहद मुश्किलें खड़ी कर दी हैं . पैसे की कीमत बहुत अधिक गिर गई है. गाँव में पहले लोग पूरे दिन भूखे बाज़ार से लौट आते थे पर सौ का नोट नहीं तुड़ाते थे. अब लोग एक सिगरेट के लिए एक हज़ार का नोट तुड़ा देते हैं. पैसे का अवमूल्यन इस क़दर हुआ है कि जिसके पास करोड रुपया भी है वह भी अपना व बच्चों का भविष्य निश्चिंत होकर सुरक्षित महसूस नहीं करता. यही कारण है कि सामाजिक मूल्यों में बेतहासा गिरावट आई है और हर कोई किसी भी उचित या अनुचित तरीक़े से अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है. धर्म उपदेशक या धर्म गुरू जो लाखों की भीड़ ठेले फिरते हैं कितना ही कहें माया ठगिनी है, माया मोह छोड़कर ईश्वर का भजन करो पर सच्चाई यह है कि पूँजीवदी व्यवस्था ने पैसे के महत्व को इस क़दर सर्वमान्य कर दिया है कि नितांत धार्मिक लोग भी धर्म के हर पाखंड को मान लेते हैं पर माया ठगिनी वाली बात धार्मिक या सामाजिक चर्चा में मानते हुए भी उसे जीवन में नहीं उतार पाते. यही कारण है कि हर धर्म गुरू के पीछे लोगों की लंबी लाइन लगी है फिर भी सामाजिक व नैतिक मूल्यों में निरंतर गिरावट आ रही है. यह बात सिर्फ़ आम धार्मिक लोगों के बारे में ही नहीं है, धर्म को संचालित करने वाले पुजारी व पुरोहित वर्ग में तो और भी घ्रणित रूप में उभर कर आती है. यही वजह है कि धार्मिक क्रिया कलाप संचालित करने वाले आम पुजारी ही नहीं जिन्हें माया मोह से ऊपर समझा जाता है और आम धार्मिक व्यक्ति की दृष्टि में सांसारिकता से ऊपर उठ गया है या भगवान की श्रेणी में आ गया है उसके मरने के बाद उसके पीछे अथाह धन दौलत पता चलती है. हाल ही में साईं बाबा की मौत के बाद लाखों करोड़ की प्रोपर्टी इसका अच्छा उदाहरण है. बाबा रामदेव आशा राम बापू सहित तमाम धर्म गुरू इसके अन्य उदाहरण हैं. अभी तिरुवंतपुरम, केरल के श्री पदमनाभन स्वामी मंदिर में जो एक लाख करोड़ से भी अधिक का खजाना मिला है उसे भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए. लेकिन महत्वपूर्ण है इनके प्रति सत्ता का रवैया जानना. मीडिया पौने दो लाख करोड के ए. राजा के घोटाले को घोटाला मानता है परंतु एक लाख करोड से अधिक के इस घोटाले को जनता में सूचना देने लायक भी नहीं समझता( हिंदुस्तान सहित आज के कई अखबारो ने यह खबर नहीं छापी है.) मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यह संपत्ति मंदिर की ही रहेगी.

1 comment:

चंदन कुमार मिश्र said...

माया तो इन सन्तों के लिए है जिसे ये सब नचाएंगे और लोग माया से दूर रहेंगे ताकि माया का खेल सन्त लोग देख सकें। महात्मा गाँधी की बात- 'अगर आपके पास जरूरत से अधिक है और किसी को जरूरत है तो आप चोर हैं।' समझ रहे होंगे, इशारा कहाँ है?