Friday 21 January 2011

इन मौतों का ज़िम्मेदार कौन है?

-Ram Prakash Anant मौत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और एक न एक दिन सभी को मरना ही है. लेकिन अपने जीवन की अंतिम स्वाभाविक परिणति तक पहुँचे बिना यदि व्यक्ति असमान्य रूप से मौत को प्राप्त होता है तो वह एक दर्दनाक घटना है. एक सभ्य समाज में व्यक्ति की मौत सबसे ख़ौफ़नाक घटना होनी चाहिए विशेषकर तब जब वह मौत बेहद सस्ती और ऐसे कारण से हुई हो जिसे आसानी से रोका जा सकता हो. अगर इस तरह की मौतें रोज़ाना हज़ारों की सख्या मैं हो रही हों जिन्हें रोका जा सकता हो परंतु राज सत्ता रोक नहीं रही हो तो इससे अधिक उस समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है. 14 जनवरी को सबरीमाला केरल में एक मंदिर में हुए हादिसे में 104 लोगों की जान चली गई. अफ़सोस की बात यह है कि इस तरह की घटनाएँ बार-बार घट रही हैं और राजसत्ता न तो उनसे कोई सबक ले रही है और न उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है. बल्कि सीधे तौर पर कहा जाए तो वह लोगों को आए दिन होने वाले इन हादिसों में मरने के लिए प्रेरित कर रही है. राजसत्ता धार्मिक स्थानों पर जुटने वाली भीड़ की सुरक्षा का तो कोई इंतज़ाम नहीं करती ऊपर से राजसत्ता का सबसे सशक्त उपादान बन चुके कर्पोरेट मीडिआ जनता में इस क़दर धार्मिक अज्ञानता पैदा करने पर जुटा है कि यदि यह कहा जाए कि काफ़ी हद तक वही इस तरह की मौतों का ज़िम्मेदार है तो ज़्यादा ठीक रहेगा. उत्तराखंड में केदार नाथ,बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चार धाम की यात्रा मई से लेकर अक्टूबर-नवंबर तक चलती है. इन यात्राओं का खूब प्रचार किया जाता है जबकि अव्यवस्थाओं के चलते हर वर्ष सेकड़ों लोग इन यात्राओं में मारे जाते हैं. वर्ष 2007-08 में विभिन्न सड़क हदिसों में क़रीब 900 लोग मारे गए. आए दिन किसी न किसी मंदिर में भगदड़ मचती रहती है और लोग मरते रहते हैं. अगस्त 08 से 14 जनवरी तक इस तरह की विभिन्न मुख्य घटनाओं में 585 लोग मारे (या मरवाए)जा चुके हैं और सेकड़ों लोग घायल हुए हैं. 3 अगस्त 08 को नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में भगदड़ मची जिसमें 150 लोगों की मौत हुई और 230 घायल हुए. 30 सितंबर 08 को चामुंडा मंदिर जोधपुर राजिस्थान में 200 लोग मारे गए और 60 घायल हो गए. 21 दिसंबर 09 को राजकोट गुजरात में 9 लोग मारे गए. जनवरी 2010 मे शिवसागर पश्चिमी बंगाल में 7 लोग मारे गए. 4 मार्च 2010 को प्रतापगढ़ यूपी में कृपालू महाराज के जन्म दिन के भंडारे में 65 लोग मारे गए.27 मार्च 2010 को मध्य प्रदेश के कारिला गाँव में 8 लोग मारे गए और 10 गंभीर रूप से घायल हो गए. 14 अप्रेल 2010 को हरिद्वार में 8 लोग मारे गए. 16 अक्टूबर2010 को बाँका तेलडीहा दुर्गा मंदिर बिहार में 10 लोग मारे गए. जबकि 25 जनबरी 2005 को महाराष्ट्र के मांधरा देवी मंदिर में 340 एवं 27 अगस्त 2003 को नासिक कुंभ मेले में 39 लोग मारे गए. जिस तरह राजसत्ता इन हादिसों से न कोई सबक ले रही है और न उनसे बचाव के लिए कोई क़दम उठा रही है एवं मीडिआ कूट-कूट कर जनता में जिस तरह धार्मिक अंधविश्वास व अज्ञानता भर रहा है उससे तो यही लगता है कि राजसत्ता ने अपने आम नागरिकों को यों ही हदिसों का शिकार होने के लिए छोड़ रखा है. नैना देवी में हुई घटना में 150 लोग मरे थे और 230 घायल हुए थे.मुझे याद है घटना के एक दिन बाद ही एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार ने खबर लगाई-मौत पर भारी पड़ी आस्था. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद जुटी अपार भीड़ की बहादुरी की अख़बार ने जमकर तारीफ़ की. यानी अख़बार इतने बड़े हादिसे के दूसरे दिन ही भीड़ के उस पागलपन का जश्न मना रहा था और जनता को यह संदेश दे रहा था कि 150 क्या एक लाख 50 हज़ार लोग मर जाएँ तब भी मौत के आगे जनता की आस्था या अंधविश्वास भारी पड़ना चाहिए. अभी 14 जनवरी को सबरीमाला मंदिर में जो 104 लोग मारे गए हैं उसकी हिंदुस्तान ने जो रिपोर्टिंग की है उसे देख कर इन घटनाओं के लिए मीडिआ की ज़िम्मेदारी स्पष्ट रूप से समझ में आ जाएगी. घटना पर अखबार ने जो ख़बर लगाई है उसके बराबर में ही बॉक्स में इस तरह की घटनाओं के कुछ आँकड़े दिए हैं और तीन हैडिंग्स लगाई हैं. सबरीमाला मंदिर-इसमें मंदिर की महत्ता को बताया है. मंदिर से जुड़ा है विवाद भी-इसमें जयमाला नाम की अभिनेत्री के फ़ॉटो के साथ यह ख़बर है कि 1986 में वे सबरीमाला मंदिर गईं थीं यह विवाद जुड़ा है. दर अस्ल मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. शुभ नहीं रहा है 14 जनवरी-इसमें लिखा है 14 जनवरी 1999 में मची भगदड़ में 52 श्रधालुओं की मौत.14 जनवरी 1952 में पटाखों में आग से 66 भक्तों की मौत. इसके नीचे इनवर्टेड कॉमा में लिखा है- 'सबरीमाला में हुए हदिसे से काफ़ी आहत हूँ .हम भारतीओं को सार्वजनिक जगहों पर व्यवहार करने की सीख लेने की ज़रूरत है. यह सिर्फ़ प्रशासन और सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं 'अभिजीत शिंदे एक आम आदमी ट्विटर पर. यह ख़बर बॉक्स में दी गई इन तीन हैडिंग्स से न सिर्फ़ असरहीन हो जाती है बल्कि पाठक पर मंदिर की महत्ता और 14 जनवरी के अशुभ होने का असर कहीं अधिक पड़ेगा. दर अस्ल ख़बर के साथ उतना ही बड़ा बॉक्स देने की वजह ही यही है. यहाँ एक बात और ध्यान देने की है. ट्विटर से अभिजीत शिंदे नाम के किसी सज्जन के विचार दिए गए हैं वे उनके कोई दर्शनिक विचार नहीं हैं. दर अस्ल जनता के इस तरह के विचार हिंदुस्तान और उसका सहयोगी मीडिआ बना रहा है. अभी-अभी हिंदुस्तान ने भ्रष्टाचार पर एक अखबारी सीरीज़ निकाली थी उसमें भी उसने ऐसे विचार रखे थे कि जनता ही रिश्वत देकर भ्रष्टाचार फैलाती है. दर अस्ल आज मीडिआ जनता को ही कठघरे में खड़ा कर राजसत्ता को उसकी ज़िम्मेदारी व पापों से मुक्त कर देना चाहता है. कुछ समय पहले कुछ लोगों ने यह माँग की थी कि अब संविधान से समाजवादी शब्द हटा लेना चाहिए. मैं भी इसका समर्थन करता हूँ और सुझाव देता हूँ कि उसमें से यह भी हटा लेना चाहिए कि हम देश का वैज्ञानिक विकास करेंगे और उसमें यह जोड़ देना चाहिए कि हम देश में घनघोर पूँजीवाद लाएँगे तथा जनता में धार्मिक अंधविश्वास व अवैज्ञानिकता कूट-कूट कर भर देंगे.